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David N. Lorenzen

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डेविड लॉरेंजन

उन इने-गिने इतिहासकारों में से हैं, जिनकी खोजों और विश्लेषणों ने प्राचीन से लेकर आरम्भिक आधुनिक काल तक के भारतीय इतिहास-लेखन पर स्थायी छाप छोड़ी है।

डेविड ने आठवें दशक के मध्य से कबीरपंथ के व्यवस्थित अध्ययन का श्रीगणेश किया। यह अध्ययन कबीर और अन्य निर्गुण सन्तों के काव्य, उनके सामाजिक प्रभाव और कबीरपंथ के विकास पर अत्यन्त विचारोत्तेजक विचार से लेकर, अठारहवीं सदी में, उत्तरी बिहार में सक्रिय इटालियन पादरी मारको देला तोंबा की ‘आत्मकथा’ लिखने तक जा पहुँचा है। इसी अध्ययन-यात्रा के कुछ महत्त्वपूर्ण पड़ावों का बोध करानेवाले नौ निबन्ध यहाँ संकलित हैं।

इन निबन्धों के अलावा, अनन्तदास की कबीर-परिचई का विस्तृत, विचारोत्तेजक भूमिका के साथ, अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित करने के साथ, कबीरपंथ और निर्गुण संवेदना के सांस्कृतिक इतिहास के बारे में अनेक निबन्ध लिखने के साथ ही डेविड लॉरेंजन ने ‘रिलीजन, स्किन कलर एंड लैंग्वेज : आर्य एंड नॉन-आर्य इन वैदिक पीरियड’, ‘दि रिलीजियस आइडियोलॉजी ऑफ़ गुप्त किंगशिप’ तथा ‘हू इंवेंटेड हिन्दुइज़्म’ जैसे बहुचर्चित और विचारोत्तेजक निबन्ध भी प्रकाशित किए हैं।

पिछले कई बरसों से डेविड लॉरेंजन मेक्सिको के प्रतिष्ठित शोध संस्थान ‘कॉलेजियो दि मेक्सिको’ में प्रोफ़ेसर हैं। उनके व्यक्तित्व में गहन जिज्ञासा और गम्भीर अध्ययन से उत्पन्न गहराई के साथ ही है चुंबकीय सहजता और खुलापन। ‘हाथी चढ़िए ज्ञान का सहज दुलीचा डारि’ की सलाह को अपने जीवन और व्यक्तित्व में डेविड ने सोलहों आने चरितार्थ किया है।

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