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Emile Zola

Emile Zola

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एमील ज़ोला


जन्म : 2 अप्रैल, 1840; पेरिस। ज़ोला फ़्रांस आ बसे इतालवी पिता और फ़्रांसीसी माँ की सन्तान थे। ज़ोला के बचपन और कैशोर्य का अधिकांश समय दक्षिणी फ़्रांस में एक्स-एन-प्रोवेंस में बीता, जहाँ उनके सिविल इंजीनियर पिता म्‍युनिसिपल वाटर सिस्टम के निर्माण के काम में लगे हुए थे। पेरिस में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद ज़ोला दो प्रयासों के बाद भी बेकेलोरिएत परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सके। नतीजतन उच्च शिक्षा के रास्ते बन्द हो गए और ज़ोला को रोज़गार की तलाश में जुट जाना पड़ा। अगले दो वर्ष ज़्यादातर बेरोज़गारी और भयंकर ग़रीबी में कटे। अन्ततोगत्वा 1862 में एक प्रकाशन संस्थान में उन्हें क्लर्क की नौकरी मिली। ज़ोला ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों पर जब लिखना शुरू किया तो उनका उद्देश्य साहित्य की दुनिया में पहचान बनाने के साथ ही कुछ अतिरिक्त कमाई करके जीना सुगम बनाना भी था। वर्ष 1866 तक ज़ोला एक आलोचक, लेखक और पत्रकार के रूप में इतना स्थापित हो चुके थे कि पूरी तरह क़लम के बूते ही अपनी आजीविका कमा सके। प्रकाशन संस्थान की नौकरी छोड़कर अब वह एक पूर्णकालिक लेखक और फ्री-लांस पत्रकार बन गए।
ज़ोला न तो मज़दूर आन्दोलन का सिद्धान्तकार थे, न ही कोई मज़दूर नेता, लेकिन ‘जर्मिनल’ (‘उम्मीद है, आएगा वह दिन’) उपन्यास में स्वत:स्फूर्तता से संगठन की मंज़िल तक हड़ताल के विकास का और फिर उसकी पराजय का विस्तृत प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने आम हड़ताली मज़दूरों के मनोविज्ञान का, उनकी चेतना की गतिकी का जो चित्रण किया है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मुक़ाम तक आते-आते उनके कृतित्व में आनुवंशिकता और जैविक नियतत्त्ववाद का स्थान मूल चालक शक्ति के रूप में नहीं रह गया था। उनका स्थान सामाजिक मनुष्य के बारे में ऐतिहासिक दृष्टिकोण ने ले लिया था। सर्वहारा वर्ग को ज़ोला अब एक ऐसे सामाजिक समूह के रूप में देख रहे थे जो अमानवीकृत कर देनेवाली सामाजिक परिस्थितियों की उपज था और जो उन परिस्थितियों का प्रतिरोध करने में, उनके विरुद्ध विद्रोह करने में सक्षम था। 

निधन : 29 सितम्बर, 1902, पेरिस।

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