
Ghanshyam
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घनश्याम का जन्म महुआडाबर (प्रखण्ड-मधुपुर, ज़िला-देवघर, झारखण्ड) नामक एक आदिवासी बहुल गाँव में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा गाँव के ही विद्यालय में हुई। आगे की पढ़ाई एडवर्ड जार्ज हाई स्कूल, मधुपुर तथा राँची विश्वविद्यालय में हुई। इसी दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। आन्दोलन के दौरान इन्हें 'मीसा' और 'डीआइआर' में नज़रबन्द कर भागलपुर केन्द्रीय कारा तथा भागलपुर कैम्प जेल में रखा गया। आपातकाल की समाप्ति के बाद झारखण्ड के आदिवासी इलाक़ों में जल, जंगल, ज़मीन और आदिवासी अस्मिता को बचाने के लिए संघर्षरत रहे तथा युवाओं को शिक्षित-प्रशिक्षित करते रहे। बाबा आमटे ने इन्हें 'लोकनायक जयप्रकाश नारायण युवा अवार्ड' से नवाज़ा। इन्होंने आदिवासियों के बीच काम करते हुए इंडिजिनोक्रेसी (देशज गणतन्त्र) नामक चर्चित पुस्तक का लेखन किया । इसका एक आलेख ‘पेंग्विन’ ने अपनी पुस्तक 'बीइंग आदिवासी' में समायोजित किया। ‘सभ्यता का संकट बनाम आदिवासियत ग्यारहवीं और हुलगुलान के शहीद आदिविद्रोही तिलका माँझी’ घनश्याम की बारहवीं पुस्तक है।