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Vishnu Vaman Shirwadkar

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"विष्णु वामन शिरवाडकर - 27 फ़रवरी, 1912 को जनमे वि.वा. शिरवाडकर की गणना मराठी के युग निर्माता साहित्यकारों में होती है। उनकी लोकप्रियता इस पराकाष्ठा पर पहुँच गयी थी कि महाराष्ट्र में उनकी वन्दना युगपुरुष के रूप में की जाती थी। वह अपने उपन्यास 'कुसुमाग्रज' से अधिक लोकप्रिय हुए। उनका प्रथम काव्य संग्रह 'जीवन-लहरी' 1933 में प्रकाशित हुआ था। तब से अब तक उनकी 3 काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 'मेघदूत' का मराठी में अनुवाद तथा एक बाल नाट्य 'जाइचा कुंज' भी सम्मिलित है। उनकी नाट्य-कृतियों की संख्या 21 है जिनमें 'ऑथेलो' तथा 'बैकेट' के रूपान्तर भी हैं। उनके दो नाटकों 'मुख्यमन्त्री' और 'विदूषक' के हिन्दी अनुवाद ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किये हैं। इनके अतिरिक्त उनके तीन उपन्यास, आठ लघु कथा संग्रह तथा एक निबन्ध-संग्रह 'आहे आणि नाहीं' प्रकाशित हो चुके हैं। कुसुमाग्रज को तीन कविता-संकलनों तथा एक नाटक पर महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार तथा एक नाटक पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। यह मराठी साहित्य सम्मेलन (1964) तथा मराठी नाट्य सम्मेलन (1970) के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुके हैं। 1988 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार (1987) समर्पित किया गया। कुसुमाग्रज ने अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया था और लगभग छह दशकों की गौरवमयी साहित्य यात्रा के पश्चात् 10 मार्च, 1999 को उनका देहावसान हुआ। "

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