
Dr. Mahendra Nath Dubey
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महेन्द्र नाथ दुबे - मणिपुर पहाड़ी की हँसुली सी बाँकी उपत्यका की तलहटी में बहती चीरी नदी की अँकवार में स्थित ओड़ाविल के अपने घर में धुर बचपन से ही अपने पितामह और पिता जी को जो चायबगान के श्रमिकों से उड़िया, संथाली, भीली, मैथिली, भोजपुरी में, बाबुओं से बांगला, त्रिपुरी, असमिया में, अंग्रेज साहबों से अंग्रेजी-स्काच में, पड़ोसी मणिपुरी लोगों में मैतई, विशुनपुरिया, लुशाई-मिजो लोगों से मार, काछाड़ी, नगा लोगों से तांखुल, सेग्मा, आओ, मोगलाई मणिपुरी मुसलमानों से उर्दू और फारसी में, राजस्थान के मारवाड़ी लोगों से मारवाड़ी में तथा उत्तर भारत के लोगों के लिए- 'वहाँ प्रचलित शब्द हिन्दुस्तानी लोगों से'-खड़ी बोली में वार्तालाप करते देख-देख डॉ. महेन्द्र नाथ दुबे जी को, जो आश्चर्य होता था। उनका कहना है कि वह अभी भी कम नहीं हुआ है; क्योंकि उनके मुकाबले में अब भी उनका अपना भाषा-ज्ञान बहुत कम ही हो पाया है। अपने इस कम भाषा-ज्ञान को वंश-परम्परा के लायक बनाने की कोशिश में वे जो साधना करते आ रहे हैं उसी का रूप है यह प्रस्तुत कृति ।