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Amarkant

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"अमरकान्त - 1 जुलाई, 1925 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के भगमलपुर (नगरा) गाँव में जनमे अमरकान्त अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर 1942 के 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ गये। आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य के निर्माण में अमरकान्त का नाम सर्वोपरि है। उनका सम्पूर्ण कथा संसार भारत के उत्तर-औपनिवेशिक यथार्थ की ज़मीन को संस्कारित कर अपने रचनात्मक विमर्श के शिल्प को वैशिष्ट्य और मौलिकता की गरिमा प्रदान करता है। 'ज़िन्दगी और जोंक' से लेकर उनके अब तक एक दर्जन कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं। प्रमुख हैं— 'मौत का नगर', 'कुहासा', 'तूफ़ान', 'एक धनी व्यक्ति का बयान', 'सुख और दुःख का साथ', 'औरत का क्रोध'। उपन्यास लेखन में भी उनकी दृष्टि और शैली समानधर्मा रही है। उनके ग्यारह उपन्यासों में 'सूखा पत्ता', 'काले उजले दिन', 'बीच की दीवार', 'आकाशपक्षी', 'इन्हीं हथियारों से', 'बिदा की रात' प्रमुख हैं। उनके कथा-पात्रों को ज़िन्दगी की बारीक़ मनोगत समस्याओं से उलझने और दार्शनिक चिन्तन करने का वक़्त नहीं, वे रोज़मर्रा की ठेठ चुनौतियों का समाधान कर जीवन को बचाये रखने की चिन्ता से ग्रस्त होते हैं। अमरकान्त की भाषा में माटी का सहज स्पर्श और सौंधी गन्ध इस तरह रची-बसी है कि पाठक मन्त्रमुग्ध हो उठता है। कुछेक संस्मरण और बाल साहित्य भी उनकी लेखनी से निःसृत हुए हैं। श्री अमरकान्त अब तक ज्ञानपीठ पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार, जन संस्कृति सम्मान, मध्य प्रदेश का 'अमरकान्त कीर्ति सम्मान', साहित्य अकादेमी सम्मान आदि से अलंकृत हो चुके हैं। "

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