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Pandey Shashi Bhushan 'Shitanshu'

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"पाण्डेय शशिभूषण 'शीतांशु' - जन्म : 18 मई, 1941। शिक्षा : पीएच.डी. (हिन्दी), डी.लिट. (भाषाविज्ञान), स्नातकोत्तर डिप्लोमा (अनुवाद)। व्यक्तित्व : गहन, व्यापक अध्ययन एवं मौलिक संदृष्टि से सम्पन्न भाषाविज्ञानी सैद्धान्तिक और सर्जनात्मक आलोचक भाषा और साहित्य के सिद्धान्त तथा विश्लेषण के लिए सिद्ध-प्रसिद्ध प्रखर तार्किक वक्ता एवं निर्भीक लेखक। वृत्ति अध्यापन भागलपुर विश्वविद्यालय सेवा (1964) में हिन्दी के व्याख्याता पद से आरम्भ कर गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर में रीडर (1977), प्रोफ़ेसर (1985), प्रोफ़ेसर- अध्यक्ष (1986-89) और अधिष्ठाता भाषा-संकाय (1992-94) तक पहुँचे। पुणे विश्वविद्यालय, पुणे में भी प्रोफ़ेसर रहे (जुलाई, 85) 2001 में अमृतसर में प्रोफ़ेसर पद से अवकाश ग्रहण म.गा. अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (2005-2007) और हैदराबाद (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय (मार्च एवं नवम्बर, 2009) में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे। ICCR, नयी दिल्ली (भारत सरकार) द्वारा 1991 और 1995 में क्रमशः त्रिनिदाद और पेइचिंग के लिए 'विज़िटिंग प्रोफ़ेसर' चुने गये। लेखन : मौलिक और सम्पादित कुल 37 पुस्तकें। इनमें एक कविता पुस्तक और एक साक्षात्कार पुस्तक भी सम्मिलित। शैली वैज्ञानिक आलोचना पर छह पुस्तकें, विसंरचनावादी (Deconstrctionist) आलोचना पर दो पुस्तकें, उत्तर-आधुनिक आलोचना पर एक पुस्तक तथा अन्य आलोचना-पद्धतियों पर भी दो पुस्तकें। इक्कीसवीं सदी के कुछ प्रमुख लेखन : विसंरचना बनाम डीकंस्ट्रक्शन देरिदा तथा अन्य चिन्तक, विसंरचनावादी आलोचना अर्थ की सर्जना, शैलीविज्ञान और भारतीय काव्यशास्त्र : तुलनात्मक सन्दर्भ, रामचरितमानस : संकेत-विसंरचनात्मक सन्दर्भ, पाश्चात्य प्रगामी आलोचना, सर्जनात्मक काव्यालोचन, पाश्चात्य व्याकरण विश्वकोश और अद्यतन भाषाविज्ञान प्रथम प्रामाणिक विमर्श साथ ही 300 से अधिक शोधालेख और आलेख प्रकाशित। "

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