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Vaishali Haldankar

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"अपने ढंग की पहली और अभी तक एकमात्र, इस आत्मकथा की लेखिका वैशाली हळदणकर की यह पहली पुस्तक है। उनका जन्म 1 जुलाई 1967 को हुआ था। परिवार का वातावरण संगीत की साधना से सराबोर था, पर अभाव और कंगाली भी कम नहीं थी। बीस वर्ष की उम्र में वे बारबाला बनीं और लगभग सत्तरह साल तक मुंबई के करीब डेढ़ सौ बारों में काम किया। इस दौरान उन्हें दिल हिला देनेवाले अनुभव हुए। जब महाराष्ट्र सरकार ने बार डांस पर प्रतिबंध लगा दिया, उन्हीं उथल-पुथल भरे दिनों में उनकी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता वर्षा काळे से हुई । वर्षा की प्रेरणा से वे बारबालाओं के संघर्ष और संगठन से जुड़ीं तथा पढ़ाई-लिखाई की दुनिया में वापस आईं। अपनी आपबीती लिखते हुए ही उन्होंने बीए का इम्तहान पास किया। उनकी यह कृति इस तथ्य का विश्वसनीय प्रमाण है कि जब सच में ताकत होती है, तो भाषा में अपने आप ऊर्जा, प्रवाह और खिंचाव आ जाता है। मूलतः मराठी भाषा में लिखित 'बारबाला' का अनुवाद कवि तथा समीक्षक पद्मजा घोरपड़े ने किया है। हिन्दी साहित्य के कई क्षेत्रों में इनका काम जाना-माना है तथा रचनात्मक लेखन के लिए इन्हें अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।"

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