Publisher:
Vani Prakashan

आधुनिक भारतीय चित्रकला की रचनात्मक अनन्यता

In stock
Only %1 left
SKU
Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Rachnatmak Ananyata
Rating:
0%
As low as ₹660.25 Regular Price ₹695.00
Save 5%

आधुनिक भारतीय चित्राकला की रचनात्मक अनन्यता - 
आधुनिक भारतीय कला-परिदृश्य को बहुधा भारतीय पुनर्जागरण या प्रबोधन के सन्दर्भ में पारिभाषित किया जाता रहा है। आशय स्पष्ट है अन्यथा या आरोपित बन्धनों, पूर्वरूढ़ियों, अन्ध रीतियों से मुक्ति और व्यक्ति-सत्ता की प्रतिष्ठा।
बीसवीं सदी के आगमन के साथ, आधुनिक भारतीय कला-दृष्टि सम्पन्न, सजग और संघर्षरत कला सर्जक विषय-वस्तु, माध्यम, उपकरण आदि के साथ अपनी भूमिका को सार्थक करने में जुट गये। रवि वर्मा (1848-1906) के बाद, आधुनिकता के संस्पर्श से कला-सृजन के क्षेत्रा में गुणात्मक परिवर्तन आया, जिसे अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, नन्दलाल बसु, रवीन्द्रनाथ, अमृता शेरगिल, जामिनी राय और उन परवर्ती चित्राकारों में लक्ष्य किया जा सकता है, जिन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य कलादर्शों से अलग हटकर, अपनी राह अन्वेषित की और रचनात्मक पहचान स्थापित की। विभिन्न कलान्दोलनों और चित्राण शैली से गुज़रती हुई, भारतीय कला ने बीसवीं सदी के चालीस-पचास दशक तक अपना एक मुकषम तय कर लिया था। इन कलाकारों की रचनात्मक अनन्यता इस अर्थ में भी महत्त्वपूर्ण है कि सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वजनीन होने का कोई दावा न करते हुए, इन्होंने अपनी कृतियों या निर्मितियों को ही ‘स्व’ का विस्तार माना। पाश्चात्य कलान्दोलनों और प्राच्य कला पद्धतियों से सम्बद्ध- असम्बद्ध चित्राकारोंµयथा, सूज़ा, रज़ा, हुसेन, कृशन खन्ना, गायतोंडे, रामकुमार, अकबर पदमसी, तैयब मेहता, परितोष सेन, गणेश पाइन, लालू प्रसाद शॉ, विकास भट्टाचार्य, अंजली इला मेनन, अर्पिता सिंह, यूसुफ़ अरक्कल, जय झरोटियाµइन सबकी कलात्मक अनन्यता का समुचित आकलन एवं विश्लेषण हिन्दी के सुपरिचित लेखक, आलोचक और कला-चिन्तक डॉ. रणजीत साहा ने अत्यन्त श्रमपूर्वक किया है। 
कला-प्रेमियों और कला-अध्येताओं को, सम्बन्धित कलाकारों द्वारा उकेरे गये चित्रों से सुसज्जित प्रस्तुत कृति पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी जान पड़ेगी।

ISBN
Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Rachnatmak Ananyata
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
डॉ. रणजीत साहा (Dr. Ranjeet Saha)

डॉ. रणजीत साहा

भागलपुर, विश्वभारती और दिल्ली विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभाग में शोध-कार्य एवं अध्यापन से सम्बद्ध रहे हैं और सम्प्रति साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में उपस्थित पद पर कार्यरत। डॉ. साहा की कई मौलिक कृतियाँ प्रकाशित हैं। आपने रवीन्द्रनाथ ठाकुर, समरेश बसु ‘कालकूट’, आशापूर्णा देवी, सत्यजित राय और महाश्वेता देवी की कृतियों के अतिरिक्त बांग्ला के कई यशस्वी कवियों की रचनाओं के अनुवाद के लिए पर्याप्त प्रशंसा अर्जित की है। आपके द्वारा अनूदित सुभाष मुखोपाध्याय की प्रतिनिधि कविताओं के संकीन ‘अग्निगर्भ’ भारतीय ज्ञानपीठ से तथा ‘चाहे जितनी दूर जाऊँ’ साहित्य अकादेमी से प्रकाशित हैं।

Write Your Own Review
You're reviewing:आधुनिक भारतीय चित्रकला की रचनात्मक अनन्यता
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/