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आधुनिक हिन्दी आलोचना के बीज शब्द

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इस कोश का निर्माण स्वान्तः सुखाय या अपनी समझदारी को धारदार बनाने के लिए हुआ है। अपनी समझदारी दूसरों की समझदारी के साथ विकसित होती है। अतः इससे दूसरों की समझदारी भी विकसित होगी। हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में इन शब्दों का प्रयोग जिस ढंग से हो रहा है वह प्रायः प्रयोक्ताओं के अधकचरे ज्ञान का सूचक है। अतः यह कोश उनके ज्ञान के सुचिन्तित विकास में एक महत्त्वपूर्ण रोल अदा कर सकता है। इस विषय पर मैं 6-7 वर्षों से काम करता हूँ-अव्याहत गति से नहीं, अनेक व्यवधानों के बीच रुक-रुककर, ठहर-ठहर कर । यों यह कार्य कुछ पहले पूरा हो गया होता यदि कवि केदारनाथ सिंह ने बाधा न उपस्थित की होती । उन्होंने मेरा ध्यान रेमंड विलियम्स की ओर आकृष्ट किया और शब्दों के ऐतिहासिक क्रम विकास को शामिल करने की सलाह दी। पत्र-पत्रिकाओं की फ़ाइलें उलटे बिना यह सम्भव नहीं था । सही कालांकन की समस्या और भी गम्भीर थी। फिर भी यथाशक्ति इस दिशा में प्रयास किया गया है। पुस्तक का नामकरण भी केदारनाथ सिंह जी ने ही किया है। प्रोफ़ेसर नामवर सिंह के सुझावों से भी मैं लाभान्वित हुआ हूँ। दोनों ही व्यक्तियों का आभारी हूँ। प्रेस-कापी तैयार करने में श्री प्रमोद कुमार ने जो सहायता की है उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं ।

- बच्चन सिंह

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बच्चन सिंह (Dr. Bachchan Singh)

"बच्चन सिंह - जन्म: 2 जुलाई, 1919; ग्राम भदवार, जीनपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: उदय प्रताप कॉलेज, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की प्रबन्ध समिति के पूर्व सदस्य एवं पदाधिकारी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का लगभग एक दशक तक अवैतनिक सम्पादन। प्रतिनिधि कृतियाँ: 'क्रान्तिकारी कवि निराला', 'समकालीन साहित्य : आलोचना और चुनौती', 'हिन्दी नाटक', 'रीतिकालीन कवियों की प्रेम व्यंजना', 'साहित्य का समाजशास्त्र', 'बिहारी का नया मूल्यांकन', 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास', 'हिन्दी आलोचना के बीज शब्द', 'आलोचक और आलोचना', 'भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन', 'कथाकार जैनेन्द्र', 'आचार्य शुक्ल का इतिहास पढ़ते हुए', 'हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास', 'कविता का शुक्ल पक्ष', 'निराला का काव्य : औपनिवेशिक तथा उत्तर औपनिवेशिक समय', 'उपन्यास का काव्यशास्त्र', 'निराला काव्य-कोश', 'साहित्यिक निबन्ध : आधुनिक दृष्टिकोण' आदि आलोचना पुस्तकों सहित 'कई चेहरों के बाद' कहानी संग्रह; 'लहरें और कगार', 'पांचाली', 'कुन्ती' आदि उपन्यास एवं 'महाभारत की कथा' शीर्षक से बुद्धदेव बसु की पुस्तक 'महाभारतेर कथा' का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित। विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित। देहावसान: 5 अप्रैल, 2008। "

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