प्रस्तुत कृति में आधुनिक हिन्दी साहित्य की कुछ चुनिन्दा प्रबन्ध रचनाओं के अध्ययन-मूल्यांकन का प्रयत्न किया गया है। इसमें छायावाद युग की श्रेष्ठतम प्रबन्ध कृति 'कामायनी' से लेकर सातवें दशक तक दहाइयों में लिखे गए प्रबन्ध काव्यों में से कुछ को अपने रचनागत वैशिष्ट्य, वैचारिक नाविन्य, दृष्टिकोण की अभिनवता तथा शिल्पगत प्रयोग अथवा अन्य इतर विशेषताओं के कारण इस संकलन में संगृहीत किया गया है। इस अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वादों, विवादों और विभिन्न काव्यान्दोलनों के बावजूद समर्थ रचनाकार अपनी आंतरिक ऊर्जा एवं तेजस्विनी क्षमताओं से आज के द्रुतगामी समयाभाव से ग्रसित क्षणजीवी तथा त्वचासुखी जीवन को अँगूठा दिखाते हुए सशक्त तथा सार्थक प्रबन्ध रचनाएँ कर सका है। ये रचनाएं मात्र प्रबन्ध काव्यत्व लेखन के आग्रह अथवा केवल औपचारिता के निभाव का परिणाम न होकर सामयिक परिवेश की जटिलताओं, मनःस्थितियों की दुरूहता एवं चिन्तन के धुन्ध और धुएँ के बीच व्यक्तिगत सरोकारों से लेकर अंर्तबाह्य मानवीय संकटों के बारे में सोचने, सचेत रहने, जूझने और तने रहने के लिए आवश्यक ईंधन जुटाती हैं; अतः स्वातंत्र्योत्तर कविता प्रबन्ध सृजन में आवश्यक दीर्घ साधना एवं अनपेक्षित धैर्य के अभाव का आरोप स्वतः खारिज हो जाता है। पाश्चात्य दर्शन और वैचारिकता ने भी अपनी भूमिका निभाई है।
विनोद गोदरे जन्म : 15 अगस्त, 1941, रहली (सागर) म.प्र. । शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. । प्रकाशित कृतियाँ : शोध एवं समीक्षा : 1. छायावादोत्तर हिन्दी प्रगीत; 2. सोच और सरोकार, 3. समकालीन हिन्दी साहित्य : विविध परिदृश्य; 4. प्रयोजनमूलक हिन्दी | कविता संग्रह : 1. आशीर्वाद से बचो; 2. दरबार बर्खास्त करते हुए; 3. खुद को टटोलते; 4. कविता, सम्भावना, राजधानी के कवि कविता संग्रहों के सहयोगी कवि । सम्पादन : 1. आधुनिक प्रबन्ध काव्य : संवेदना के धरातल, 2. शोध एवं समीक्षा; 3. स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कविता; 4. प्रसाद साहित्य : विविध आयाम (सह-सम्पादन) । अनुवाद : 1. मराठी-गुजराती कविता-कहानियों का अनुवाद; 2. 'सीधी रेखा' प्रसिद्ध मराठी कथाकार गंगाधर गाडगिल की कुछ कहानियों का अनुवाद; 3. 'रश्मि' पत्रिका का सह-सम्पादन ।