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आधुनिक विज्ञापन

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जिस तीव्रता से विश्व औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा है उतनी ही तीव्रता से विज्ञापन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। समयानुसार इसकी संरचना एवं शिल्प में आवश्यकतानुकूल परिवर्तन होता रहा है। वस्तुतः आधुनिक समाज में विज्ञापन की भूमिका बहुत हद तक बदल गयी है । आज विज्ञापन केवल सूचना मात्र नहीं देता बल्कि उपभोक्ता को ब्रांड-विशेष खरीदने के लिए बाध्य भी करता है ।
आधुनिक पूँजीवादी समाज में विज्ञापन का दायित्व पहले की अपेक्षा बढ़ गया है। इसकी भूमिका में भी गुणात्मक परिवर्तन आ गया है। वस्तुतः किसी भी समाज व्यवस्था के विकास का मापदण्ड उसकी अर्थव्यवस्था होती है और अर्थवस्था के विकास का मूल है विज्ञापन । डॉ. पातंजलि की यह पुस्तक आधुनिक युग में विज्ञापन के बदलते स्वरूप को उद्घाटित करती है। आधुनिक विज्ञापन का कलेवर, विषय-वस्तु, संरचना एवं भाषा सम्बन्धी सभी परिवर्तनों पर लेखक की दृष्टि बराबरा बनी रही है। व्यावहारिक हिन्दी को बढ़ावा देने और उसके प्रयोग-क्षेत्र को विस्तृत करने के लिए निरन्तर प्रयासरत डॉ. पातंजलि की इस पुस्तक में आधुनिक विज्ञापन के सभी पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। विज्ञापन जैसे विषय पर हिन्दी भाषा में पुस्तक लिखने के गम्भीर प्रयास अभी तक नहीं हुए हैं। प्रस्तुत पुस्तक इसी रिक्तता को भरने का सार्थक प्रयास है।

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