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Vani Prakashan

आदिवासी स्वर-2 : वाचिक परम्परा व साहित्य

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Aadivasi Swar-2 : Vachik Parampara Wa Sahitya
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‘’वाचिक परम्परा व साहित्य' आदिवासी स्वर पुस्तकमाला का दूसरा खण्ड है। यह महत्त्वपूर्ण खण्ड आदिवासी जनजाति संतालों के संघर्ष का प्रस्थान-बिन्दु है। यह पुस्तक सदियों से जल-जंगल-ज़मीन और अपनी स्वतन्त्र अस्मिता की तलाश में संघर्षरत विभिन्न आदिवासी समुदायों की गाथा प्रस्तुत करने का प्रयास है। पुस्तक के इस खण्ड में देश के विभिन्न भागों में बसने-घूमने वाले आदिवासी समुदायों की वाचिक परम्परा और साहित्य का अध्ययन किया गया है। इसके अन्तर्गत आदिवासियों के साहित्य, उनकी संस्कृति, लोककथाओं, लोकगीतों पर सुमान्य लेखकों ने दृष्टिपात किया है। 'हूल' या 'संताल विद्रोह’ के सन्दर्भ में देश के विभिन्न हिस्सों में फैली आदिवासी जातियों-जनजातियों के इतिहास और वर्तमान की पड़ताल और भविष्य की सम्भावनाओं की तलाश की जानी चाहिए।'

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Aadivasi Swar-2 : Vachik Parampara Wa Sahitya
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