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आग का रहस्य

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Aag Ka Rahasya
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काव्य-लेखन की परम्परा प्राचीन है और प्राचीन समय से ही मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति के लिए काव्य-लेखन करता रहा है। हर दौर में कविता का रूप तो बदला ही, साथ ही उसे अपनी वैचारिक क्षमता के अनुसार भी प्रयोग में लाया गया। ऐसे अनेक महान कवि हुए हैं जिन्होंने अनेक महान काव्य-कृतियों की रचना की और अपनी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रसार किया । इस श्रेणी में चर्चित कवि राजकुमार कुम्भज भी एक हैं जिन्होंने अनेक काव्य-कृतियों की रचना की। उनका नया काव्य-संग्रह 'आग का रहस्य' भी उनके पूर्व के काव्य-संग्रहों की भाँति अपने में क्रान्तिकारी विचारों से युक्त कविताओं को समेटे हुए है, यह कविताएँ अवश्य ही पाठकों को ऊर्जस्वित और रोमांचित करेंगी।

܀܀܀

सिर्फ़ जलती हैंपिघलती क्यों नहीं हैं ये मोमबत्तियाँ ?क्यों साइबेरिया पलता है उनके पेट में? और क्यों तनी मुट्ठियाँ खुल जाती हैं चतुर सौदागरों की पोटलियों जैसी ? मैंने देखा है, सुना है वह भ्रष्टाचार जहाँ हार जाता है हर एक विचार पूँजीवाद ! पूँजीवाद !! अटपटा ख़याल है कि किसको, कितना धिक्कार ? सब दर्ज़ी हैं, सब फर्ज़ हैं मिलते ही मौक़ा छप-छपाक गिरते हैं सब उठने के दिन को, दूर से ही करते हुए नमस्कार सबके सब कितने लाचार ?टपकाते लार, चाटते अचार ? आराम- दक्ष के बन्द-कक्ष में सोचते ब्रह्माण्ड सिर्फ़ जलती हैं पिघलती क्यों नहीं हैं ये मोमबत्तियाँ ? क्यों जलते नहीं हैं हाय?

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Aag Ka Rahasya
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राजकुमार कुम्भज (Rajkumar Kumbhaj)

"राजकुमार कुम्भज जन्म : 12 फ़रवरी 1947, मध्य प्रदेश स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं किसान परिवार छात्र जीवन में सक्रिय राजनीतिक भूमिका के कारण पुलिस-प्रशासन द्वारा लगातार त्रस्त बिहार 'प्रेस- विधेयक' 1982 के विरोध में सशक्त और सर्वथा मौलिक प्रदर्शन आपात्काल 1975 में भी पुलिस बराबर परेशान करती रही अपमानित करने की हद तक 'सर्व' ली गयी यहाँ तक कि निजी जिन्दगी में भी पुलिस दखलन्दाजी भुगती/ 'मानहानि विधेयक' 1988 के खिलाफ खुद को जंजीरों में बाँधकर एकदम अनूठा सर्वप्रथम सड़क-प्रदर्शन डेढ़-दो सी शीर्ष स्थानीय पत्रकारों के साथ जेल देशभर में प्रथमतः अपनी पोस्टर कविताओं की प्रदर्शनी कनॉट प्लेस, नयी दिल्ली 1972 में लगाकर बहुचर्चित गिरफ्तार भी हुए दो-तीन मर्तबा जेल यात्रा तिहाड़ जेल में पन्द्रह दिन सजा काटने के बाद नये अनुभवों से भरपूर फिर भी संवेदनशील, विनोद प्रिय और जिन्दा दिल स्वतन्त्र पत्रकार। काव्य-संग्रह : कच्चे घर के लिए, जलती हुई मोमबत्तियों के नीचे मुद्दे की बात (अप्रसारित), बहुत , कुछ याद रखते हुए (सीमितप्रसार), दृश्य एक घर है, मैं अकेला खिड़की पर, अनवरत, उजाला नहीं है उतना, जब कुछ छूटता है, बुद्ध को बीते बरस बीते, मैं चुप था जैसे पहाड़, प्रार्थना से मुक्त, अफवाह नहीं हूँ मैं, जड़ नहीं हूँ मैं, और लगभग इस ज़िन्दगी से पहले, शायद ये जंगल कभी घर बने, घोड़े नहीं होते तो खिलाफ़ होते, निर्भय सोच में । व्यंग्य-संग्रह: आत्मकथ्य । अतिरिक्त : विचार कविता की भूमिका, शिविर, त्रयी, काला इतिहास, वाम कविता, चौथा सप्तक, निषेध के बाद, हिन्दी की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविता, सद्भावना, आज की हिन्दी कविता, नवें दशक की कविता यात्रा, कितना अँधेरा है, झरोखा, मध्यान्तर, Hindi Poetry Today Volume 2, छन्द प्रणाम, काव्य चयनिका, आदि अनेक महत्त्वपूर्ण तथा चर्चित कविता संकलनों में कविताएँ सम्मिलित और अंग्रेजी सहित भारतीय भाषाओं में अनूदित । देश की लगभग सभी महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठित, श्रेष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन । सम्पर्क: 331, जवाहरमार्ग, इन्दौर-452002 (म.प्र.), फोन 0731-2543380 ई-मेल : rajkumarkumbhaj47@gmail.com"

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