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आज बाज़ार बन्द है

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विश्व में आदिकाल से समाज पर संभोग दर्शन काबिज रहा है जिसके सामने सभी दर्शन फीके रहे हैं। भारतीय समाज और आध्यात्मिकता का दर्शन भी इससे अछूता नहीं रहा बल्कि धार्मिक परम्पराओं ने देह दर्शन की ओर भी अलौकिक तरीके से शुरुआत की है। मन्दिरों ने नारी उत्पीड़न की उसी परम्परा को विकसित किया। देवदासियों से लेकर वेश्याओं की मार्मिक कथा 'आज बाज़ार बन्द है' है। देह-व्यापार से देह उत्सव की रंगरलियों की भूल-भुलैया में फँसी दलित महिलाओं की दारुण कथा का जैसे सजीव चित्रण हुआ है ।
देह सम्मोहन से तनाव के बीच छटपटाती राष्ट्र की बेटियों के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों पर सटीक और बेबाक टिप्पणी की गयी है। उनकी अस्मिता तथा भटकाव के दोराहे से उनके उभरने के प्रयास को सामाजिक सरोकारों का दर्शन भी कहा जा सकता है। वरिष्ठ दलित कथाकार मोहनदास नैमिशराय को देह व्यापार की अँधेरी और तंग गलियों के उमस और तमस से भरे परिवेश की गूँज से असीम सम्भावनाओं की तलाश है। देह बेचने वालियों के जीवन रंगों से उभरती बयार और उमस पर आधारित रचना की सार्थकता भी तभी होगी। खोई हुई अस्मिता की तलाश में संघर्ष करती राष्ट्र की बेटियों के जीवन की घटनाओं/दुर्घटनाओं के हर पहलू को उजागर करती यह सशक्त रचना है।

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