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आज भी खरे है तालाब

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Aaj Bhi Khare Hai Talab
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तालाब एक बड़ा शून्य है अपने आप में। लेकिन तालाब पशुओं के खुर से बन गया कोई ऐसा गड्ढा नहीं कि उसमें बरसात का पानी अपने आप भर जाए। इस शून्य को बहुत सोच-समझ कर, बड़ी बारीकी से बनाया जाता रहा है। छोटे से लेकर एक अच्छे बड़े तालाब के कई अंग-प्रत्यंग रहते थे। हरेक का अपना एक विशेष काम होता था और इसलिए एक विशेष नाम भी । तालाब के साथ-साथ यह उसे बनाने वाले समाज की भाषा और बोली की समृद्धि का भी सबूत था। पर जैसे-जैसे समाज तालाबों के मामले में गरीब हुआ है, वैसे-वैसे भाषा से भी ये नाम, शब्द धीरे-धीरे उठते गये हैं ।
बादल उठे, उमड़े और पानी जहाँ गिरा, वहाँ कोई एक जगह ऐसी होती है जहाँ पानी बैठता है । एक क्रिया है : आगौरना, यानी एकत्र करना। इसी से बना है आगौर । आगौर तालाब का वह अंग है, जहाँ से उसका पानी आता है । यह वह ढाल है, जहाँ बरसा पानी एक ही दिशा की ओर चल पड़ता है। इसका एक नाम पनढाल भी है। आगौर को मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पैठू, पौरा या पैन कहते हैं। इस अंग के लिए इस बीच में हम सबके बीच, हिन्दी की पुस्तकों, अख़बारों, संस्थाओं में एक नया शब्द चल पड़ा है-जलागम क्षेत्र। यह अंग्रेज़ी के कैचमेंट से लिया गया अनुवादी बनावटी और एक हद तक गलत शब्द है। जलागम का अर्थ वर्षा ऋतु रहा है। 
तालाब में पानी आता है, पानी जाता है। इस आवक-जावक का पूरे तालाब पर असर पड़ता है। वर्षा की तेज़ बूँदों से आगौर की मिट्टी धुलती है तो आगर में मिट्टी घुलती है। पाल की मिट्टी कटती है तो आगर में मिट्टी भरती है। आगौर का पानी जहाँ आकर भरेगा, उसे तालाब नहीं कहते। वह है आगर । तालाब तो सब अंग-प्रत्यंगों का कुल जोड़ है। आगर यानी घर खज़ाना। तालाब का खज़ाना है आगर, जहाँ सारा पानी आकर जमा होगा। आगौर और आगर सागर के दो प्रमुख अंग हैं ।
हमारे अधिकांश शहर और जिन गाँवों में उनके पैर पसर रहे हैं, वे गाँव भी आज तालाबों की दुर्दशा के सन्दर्भ बन सारे देश में फैल चुके हैं। आज तालाबों से कट गया समाज, उसे चलाने वाला प्रशासन तालाब की सफाई और साद निकालने का काम एक समस्या की तरह देखता है और वह इस समस्या को हल करने के लिए तरह-तरह के बहाने खोजता है। उसके नये हिसाब से यह काम खर्चीला है ।
पाठकों को लगेगा कि अब उन्हें एक तालाब के बनने का-पाल बनने से लेकर पानी भरने तक का पूरा विवरण मिलने वाला है। हम खुद ऐसा विवरण खोजते रहे पर हमें वह कहीं मिल नहीं पाया। जहाँ सदियों से तालाब बनते रहे हैं, हजारों की संख्या में बने हैं-वहाँ तालाब बनाने का पूरा विवरण न होना शुरू में अटपटा लग सकता है, पर यही सबसे सहज स्थिति है। 'तालाब कैसे बनाएँ' के बदले चारों तरफ 'तालाब ऐसे बनाएँ' का चलन चलता था। फिर भी छोटे-छोटे टुकड़े जोड़ें तो तालाब बनाने का एक सुन्दर न सही, कामचलाऊ चित्र तो सामने आ ही सकता है।

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