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Vani Prakashan
आज के गम़ के नाम
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Aaj Ke Gham Ke Naam
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बुझा जो रौज़ने-जिंदाँ तो दिल ये समझा है
कि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी
चमक उठे हैं सलासल तो हमने जाना है
कि अब सहर तेरे रुख पर बिखर गई होगी
ग़रज़ तसव्वुरे-शामो-सहर में जीते हैं
गिरफ़्ते-सायए-दीवारो-दर में जीते हैं
युँही हमेशा उलझती रही है जुल्म से ख़ल्क़
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
युँही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल
न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई
इसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते
तेरे फ़िराक़ में हम दिल बुरा नहीं करते
गर आज तुझ से जुदा हैं तो कल बहम होंगे
ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं
गर आज औज पे है तालए-रक़ीब तो क्या
ये चार दिन की खुदाई तो कोई बात नहीं
जो तुझ से अहूदे-वफ़ा उस्तवार करते हैं
इलाजे-गर्दिशे-लैलो-नेहार करते हैं।
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Aaj Ke Gham Ke Naam
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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