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आकाश को पढ़ा जाए

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Aakash Ko Padha Jaye
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हिंदी में ग़ज़ल कहने वाले कवियों में श्याम कश्यप 'बेचैन' का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इनकी ग़ज़लें प्रायः सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर पाठकों तक पहुँचती रही हैं।
एक लोकप्रिय काव्य-विधा के रूप में ग़ज़ल को मिली प्रतिष्ठा ने यह संशय उपस्थित किया कि कहीं लोकप्रियता के फेर में वह अपनी श्रेष्ठता तो नहीं खो रही है? निश्चय ही इस संशय के आधार थे। दिल की मर्मस्पर्शी भावनाओं की अभिव्यक्ति मानने की जगह इसे महज शाब्दिक कौशल मानने वालों की लेखनी के कारण यह प्रश्न उठा था। लेकिन तब भी अनेक कवियों ने अपनी रचनात्मकता का स्तर श्रेष्ठ बनाये रखकर लोकप्रियता प्राप्त की। ऐसे कवियों में श्याम कश्यप 'बेचैन' प्रमुख रहे हैं।
'बेचैन' की ग़ज़लें 'आम हिन्दुस्तानी अवाम' की जुबान में हैं और आमलोगों को सम्बोधित हैं। इनमें एक तरफ ज़िदंगी का तल्ख यथार्थ वर्णित है तो साथ ही आदमी की अहमियत को प्रतिष्ठा भी दी गयी है। उनका एक शेर है-
मुझे फ़ख्र है मैं कहीं का तो हूँ
नहीं आसमां का जमीं का तो हूँ
जमीन से जुड़े कवि की ये ग़ज़लें हिंदी के व्यापक पाठक समाज में निश्चय ही समादृत होंगी ।

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