आरम्भ से ही नागार्जुन की कविताओं का एक बड़ा हिस्सा प्रकृति से सम्बन्धित रहा है। प्रकृति उन्हें आकर्षित करती रही है और उनका यात्री मन उसमें रमता रहा है। प्रकृति से इस गहरे जुड़ाव के कारण नागार्जुन ने उससे एक नया रचनात्मक रिश्ता बनाया है। वे प्रकृति का महज दृश्य वर्णन नहीं करते बल्कि उसे मानवीय संवेदना से सीधे जोड़कर देखते हैं। यह संवेदनात्मक जुड़ाव इस हद तक है कि प्रकृति नागार्जुन के जीने में शामिल है। यही वजह है कि प्रकृति के परिवर्तित होते संस्पर्श उनकी मनःस्थितियों के बदलाव के कारण भी बनते हैं। नागार्जुन के इस नये संग्रह में प्रकृति से उनके इस रचनात्मक ‘पारिवारिक’ रिश्ते को आप सहज ही अनुभव करेंगे। लेकिन इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये कविताएँ 'प्रकृति काव्य' होकर भी महज प्रकृति के बारे में नहीं हैं बल्कि कुल मिलाकर मनुष्य की जिन्दगी के संघर्ष और उसके हर्ष-विषाद के बारे में ही हैं। यही जनकवि नागार्जुन के काव्य का मूल कथ्य भी रहा है। पौड़ी गढ़वाल के पर्वतीय ग्रामांचल जहरी खाल प्रवास में रहकर लिखी गयी ये कविताएँ नागार्जुन के कवि मन की एक विशेष दुनिया सामने लाती हैं, जो आह्लादकारी होने के साथ ही मार्मिक भी हैं।
क्या नहीं है इन घुच्ची आँखों में! इन शातिर निगाहों में मुझे तो बहुत कुछ प्रतिफलित लग रहा है! नफरत की धधकती भट्ठियाँ... प्यार का अनूठा रसायन... अपूर्व विक्षोभ... जिज्ञासा की बाल-सुलभ ताजगी... ठगे जाने की प्रायोगिक सिधाई... प्रवंचितों के प्रति अथाह ममता... क्या नहीं झलक रही इन घुच्ची आँखों से? हाय, हमें कोई बतलाए तो ! क्या नहीं है इन घुच्ची आँखों में!
जन्म : 30 जून, 1911 (ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन); ग्राम—तरौनी, ज़िला—दरभंगा (बिहार)।
शिक्षा : परम्परागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा।
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार। हिन्दी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में काव्य-रचना। पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’। मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से ही लेखन। शिक्षा-समाप्ति के बाद घुमक्कड़ी का निर्णय। गृहस्थ होकर भी रमते-राम। स्वभाव से आवेगशील, जीवन्त और फक्कड़। राजनीति और जनता के मुक्तिसंघर्षों में सक्रिय और रचनात्मक हिस्सेदारी। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा मध्य प्रदेश और बिहार के ‘शिखर सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित।
प्रमुख कृतियाँ : ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘बलचनमा’, ‘वरुण के बेटे’, ‘नई पौध आदि’ (उपन्यास); ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘हज़ार-हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पका है यह कटहल’, ‘अपने खेत में’, ‘मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा’ (कविता-संग्रह); ‘भस्मांकुर’, ‘भूमिजा’ (खंडकाव्य); ‘चित्रा’, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (हिन्दी में भी अनूदित मैथिली कविता-संग्रह); ‘पारो’ (मैथिली उपन्यास); ‘धर्मलोक शतकम्’ (संस्कृत काव्य) तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियाँ।