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Aalochak Ajneya Ki Upasthiti

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मैं समय-समय पर सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' पर लिखता रहा हूँ। मैंने पाया है कि अज्ञेय के आलोचक रूप को हिन्दी आलोचना ने दबा दिया है-केवल रचनाकर्म पर विचार होता रहा है। इसलिए आलोचना की लगी बँधी खूँटी से अपने को बचाकर इन लेखों में मैंने अपने को आत्मीय प्रतिक्रियाओं के प्रवाह में मुक्त बहने दिया है। अज्ञेय के आलोचना सूत्रों को पाने-थाहने की दृष्टि से यात्रा-साहित्य, कला-चिन्तन, साक्षात्कार, पत्र-साहित्य तथा वैचारिक आधार से जुड़े लेखों के चिन्तन को एकत्र करके दे दिया है। यह सब देने के पीछे मन यही रहा कि अज्ञेय के आलोचना-कर्म की मनोभूमिका को समझा जा सके। अब तक ये लेख पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे पड़े थे उन्हें एक जगह एकत्रित भी करना चाहता था ताकि पाठकों का ध्यान एकाग्र रूप से उन पर जा सके।
मैंने पाया है कि पिछड़ी पीढ़ी अज्ञेय की अंगरेजियत से आक्रान्त रही है और उन्हें विदेशों का नकलची या अमौलिक साबित करती रही। नयी पीढ़ी अज्ञेय की भारतीयता, देसी ढंग की आधुनिकता या भारतीय आधुनिकता से 'बोर' हुई पड़ी है। और उनके नयेपन को पुराना ठहराने में जुटी हुई है। अज्ञेय आज आधुनिकों में प्राचीन हैं और प्राचीनों में आधुनिक। इस दृष्टि से उनकी सर्जनात्मक आलोचना का विशेष महत्त्व है।

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डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल (Dr. Krishan Dutt Paliwal)

जन्म : 4 मार्च, 1943 को सिकंदरपुर, जिला फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में। प्रकाशन : भवानी प्रसाद मिश्र का काव्य-संसार, आचार्य रामचंद्र शुक्ल का चिंतन जगत्, मैथिलीशरण गुप्‍त : प्रासंगिकता के अंत:सूत्र, सुमित्रानंदन पंत, डॉ. अंबेडकर और समाज-व्यवस्था, सीय राम मय सब जग जानी, सर्वेश्‍वरदयाल सक्सेना, हिंदी आलोचना के नए वैचारिक सरोकार, गिरिजा कुमार माथुर, जापान में कुछ दिन, डॉ. अंबेडकर : समाज-व्यवस्था और दलित-साहित्य, उत्तर आधुनिकता की ओर, अज्ञेय होने का अर्थ, उत्तर-आधुनिकतावाद और दलित साहित्य, नवजागरण और महादेवी वर्मा का रचनाकर्म : स्त्री-विमर्श के स्वर, अज्ञेय : कवि कर्म का संकट, निर्मल वर्मा (विनिबंध) दलित साहित्य : बुनियादी सरोकार, निर्मल वर्मा : उत्तर औपनिवेशिक विमर्श। लक्ष्मीकांत वर्मा की चुनी हुई रचनाएँ, मैथिलीशरण गुप्‍त ग्रंथावली का संपादन। पुरस्कार/सम्मान : हिंदी अकादमी पुरस्कार, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन सम्मान, तोक्यो विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय, जापान द्वारा प्रशस्ति-पत्र, राममनोहर लोहिया अतिविशिष्‍ट सम्मान, सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान, साहित्यकार सम्मान, विश्‍व हिंदी सम्मान, विश्‍व हिंदी सम्मेलन, न्यूयॉर्क में सम्मानित। दिल्ली विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे तथा तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर।

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