प्रस्तुत पुस्तक रामदरश मिश्र के विशिष्ट समीक्षात्मक निबन्धों का संकलन है । मिश्र जी अपने को प्रमुखतः सर्जक मानते हैं किन्तु आलोचना के क्षेत्र में भी उनकी उपस्थिति कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने नाटक के अतिरिक्त साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं की समीक्षा यात्रा की है तथा उनके विविध पड़ावों, प्रवृत्तियों, रचनाकारों और रचनाओं की गहरी पहचान की है। इस संकलन में कुछ सिद्धान्तपरक निबन्ध भी हैं किन्तु व्याख्यात्मक समीक्षापरक निबन्धों की ही प्रधानता है। आधुनिक चेतना से सम्पन्न मिश्र जी प्रगतिवादी दृष्टि के रचनाकार और आलोचक हैं। आधुनिक काल का साहित्य उनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र रहा है किन्तु इस संकलन में विद्यापति, कबीर की कविताओं तथा 'रामचरित मानस' से सम्बन्धित समीक्षात्मक निबन्ध भी हैं। मिश्र जी सामाजिक यथार्थ और परिवेशगत जीवन के रचनाकार हैं अतः उनकी समीक्षा-दृष्टि उन रचनाओं को विशेष महत्त्व प्रदान करती है जिनमें अपने परिवेश और समाज का जीवन बोलता है। इन निबन्धों में उनकी यह दृष्टि देखी जा सकती है। मिश्र जी समीक्ष्य रचनाओं पर अपने को आरोपित नहीं करते, बल्कि उनके भीतर पैठ कर, उनकी अपनी वस्तुगत और कलागत छवियों की पहचान करते हैं।
जन्म : श्रावण पूर्णिमा सं. 1881 को डुमरी, ज़िला—गोरखपुर में।
शिक्षा : उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राप्त की।
आठ वर्षों तक गुजरात में हिन्दी के अध्यापक रहे। तदुपरान्त हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापन। वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद अब स्वतंत्र लेखन में व्यस्त।
प्रकाशन : चार काव्य-संग्रह, सात उपन्यास, पाँच कहानी-संग्रह, एक निबन्ध-संग्रह और दस समीक्षात्मक कृतियाँ प्रकाशित। कुछ प्रमुख समीक्षात्मक कृतियाँ हैं : ‘हिन्दी समीक्षा : स्वरूप और सन्दर्भ : एक अन्तर्यात्रा’, ‘हिन्दी कहानी : अन्तरंग पहचान’; ‘आज का हिन्दी साहित्य : संवेदना और दृष्टि’; ‘छायावाद का रचनालोक’।
सम्मान : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘उदयराज सिंह स्मृति सम्मान’ सहित कई सम्मानों से सम्मानित।