Publisher:
Vani Prakashan

आलोचना का द्वन्द्व

In stock
Only %1 left
SKU
Aalochna Ka Dwandwa
Rating:
0%
As low as ₹556.00 Regular Price ₹695.00
Save 20%
‘आलोचना का द्वन्द्व’ - "वास्तव में नयी कविता, नयी कहानी या नये नाटक के समान ही एक अच्छी 'नयी समीक्षा' की भी पहचान होनी चाहिए।" यह कथन 'समीक्षा की अनिवार्यता और उपयोगिता' पर विश्वास करने वाले प्रखर आलोचक देवीशंकर अवस्थी के आलोचना कर्म का एक ध्येय भी रहा है। अपने प्रारम्भिक लेखन काल से ही वे इस बात की वकालत करते रहे हैं कि "समीक्षाओं या समीक्षकों को गाली देने के स्थान पर यह कहीं अच्छा होगा कि अच्छी समीक्षाओं की चर्चा हो। उन्हें दुबारा छापा जाए या कि संकलित रूप में प्रकाशित किया जाए।" 'विवेक के रंग' और 'नयी कहानी : सन्दर्भ और प्रकृति' समीक्षा संकलनों के माध्यम से उन्होंने अपने विचार को वास्तविकता में स्थापित भी करके दिखाया। श्री देवीशंकर अवस्थी हिन्दी आलोचना का मार्ग प्रशस्त करने के साथ ही हिन्दी आलोचना के लिए सद्भावनापूर्ण नया माहौल भी बनाने की कोशिश में सतत सक्रिय रहे। 'आलोचना का द्वन्द्व' में संकलित, सन् 1960 में लिखा उनका यह वाक्य आज भी कितना सार्थक है और साथ ही चेतावनी भी देता है : "इसी प्रसंग में यह भी कह देना चाहता हूँ कि सृजनशील लेखकों द्वारा लिखी गयी समीक्षा एवं पेशेवर आलोचकों द्वारा लिखी गयी समीक्षा के मध्य कृत्रिम दीवारें खड़ी करना ठीक नहीं है।...दोनों ही प्रकार के लेखक एक रचना विशेष के प्रबुद्ध पाठक मात्र हो जाते हैं।"
ISBN
Aalochna Ka Dwandwa
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
देवीशंकर अवस्थी (Devishankar Awasthi)

"देवीशंकर अवस्थी (1930-1966) - जन्म : 5 अप्रैल, 1930, सथनी बालाखेड़ा, ज़िला उन्नाव, उत्तर प्रदेश । शिक्षा : रायबरेली और कानपुर; 1960 में आगरा विश्वविद्यालय से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निर्देशन में पीएच.डी. । 'यों लॉ की डिग्री' भी ली थी। कार्यक्षेत्र : अध्यापन : 1953 से 1961 तक डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर, 1961 से जनवरी 1966 (मृत्युपर्यन्त) दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग से सम्बद्ध । रचनाएँ : मौलिक : आलोचना और आलोचना, रचना और आलोचना, अठारहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा काव्य में प्रेमाभक्ति, रचना का समकाल। सम्पादित : कविताएँ : 1954, विवेक के रंग, नयी कहानी : सन्दर्भ और प्रकृति, साहित्य विधाओं की प्रकृति, कहानी विविधा, सम्पादित पत्रिका : कलजुग । स्मृति-शेष : 13 जनवरी, 1966 (सड़क दुर्घटना में) ।"

Write Your Own Review
You're reviewing:आलोचना का द्वन्द्व
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP