आमीन
पूर्वान्त' कहानी में एक वाक्य है कि, “पचास मीन मेख निकालने वाली मम्मी अब ऐसे निर्लिप्त भाव से खाती हैं कि लगता ही नहीं कि खाने का कोई स्वाद उनके अंदर शेष है।”... शैलेन्द्र सागर जीवन के 'आपत्तिग्रस्त आस्वाद' की अचूक पहचान करने वाले कहानीकार हैं। उनकी कहानियाँ बिना किसी औपचारिक भूमिका के विस्तार पाती हैं। इस विस्तार में अनुभव, स्वप्न, विश्लेषण और निष्कर्ष एक दूसरे से समृद्ध होते देखे जा सकते हैं। कहानी में 'कहानीपन' बचा रहे, शैलेन्द्र सागर का रचनात्मक संकल्प प्रतीत होता है। दीवार टैडीबियर, गाँठ, आमीन, इसके बावजूद, अग्निपूर्व जैसी कहानियों से समकालीन हिंदी कहानी में कुछ सार्थक पन्ने जुड़ते हैं । 'प्रयोग' शैलेन्द्र सागर की कहानियों का उद्देश्य नहीं, उनका लक्ष्य है जीवन और 'जीवन के संवेदनात्मक उत्थान-पतन । उत्थान में उपस्थित अंतर्द्वद्व और पतन में प्रकट होती दुश्चिंता को शैलेन्द्र सागर पूरी ऊर्जा के साथ रेखांकित करते हैं। उनकी भाषा बिना अनुकरण के, अपना रूपाकार गढ़ती है। स्पंदित होते वाक्य, साँस लेते शब्द और कई बार अपूर्ण दिखते हुए भी संपूर्णता से सिहरते संदर्भ शैलेन्द्र सागर की कहानी कला का प्रमाण देते हैं।
'आमीन' शैलेन्द्र सागर की उन कहानियों का संग्रह है जिनमें जीवन के प्रति तरल कृतज्ञता का सहज समावेश है।
Publication | Vani Prakashan |
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