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आमीन

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पूर्वान्त' कहानी में एक वाक्य है कि, “पचास मीन मेख निकालने वाली मम्मी अब ऐसे निर्लिप्त भाव से खाती हैं कि लगता ही नहीं कि खाने का कोई स्वाद उनके अंदर शेष है।”... शैलेन्द्र सागर जीवन के 'आपत्तिग्रस्त आस्वाद' की अचूक पहचान करने वाले कहानीकार हैं। उनकी कहानियाँ बिना किसी औपचारिक भूमिका के विस्तार पाती हैं। इस विस्तार में अनुभव, स्वप्न, विश्लेषण और निष्कर्ष एक दूसरे से समृद्ध होते देखे जा सकते हैं। कहानी में 'कहानीपन' बचा रहे, शैलेन्द्र सागर का रचनात्मक संकल्प प्रतीत होता है। दीवार टैडीबियर, गाँठ, आमीन, इसके बावजूद, अग्निपूर्व जैसी कहानियों से समकालीन हिंदी कहानी में कुछ सार्थक पन्ने जुड़ते हैं । 'प्रयोग' शैलेन्द्र सागर की कहानियों का उद्देश्य नहीं, उनका लक्ष्य है जीवन और 'जीवन के संवेदनात्मक उत्थान-पतन । उत्थान में उपस्थित अंतर्द्वद्व और पतन में प्रकट होती दुश्चिंता को शैलेन्द्र सागर पूरी ऊर्जा के साथ रेखांकित करते हैं। उनकी भाषा बिना अनुकरण के, अपना रूपाकार गढ़ती है। स्पंदित होते वाक्य, साँस लेते शब्द और कई बार अपूर्ण दिखते हुए भी संपूर्णता से सिहरते संदर्भ शैलेन्द्र सागर की कहानी कला का प्रमाण देते हैं।
'आमीन' शैलेन्द्र सागर की उन कहानियों का संग्रह है जिनमें जीवन के प्रति तरल कृतज्ञता का सहज समावेश है।

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शैलेन्द्र सागर (Shailendra Sagar)

शैलेन्द्र सागर

शैलेन्द्र सागर का जन्म 5 अप्रैल, 1951 को रामपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया। तीन वर्षों तक स्नातकोत्तर महाविद्यालय में अध्यापन किया। 1974 में उ.प्र. राज्य सिविल सर्विस में चयन हुआ और तदुपरांत 1976 से भारतीय पुलिस सेवा में सेवारत रहे। 2010 में पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।
उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—चतुरंग, चलो दोस्त सब ठीक है, एक सुबह यह भी (उपन्यास); मकान ढह रहा है, इस जुनून में, माटी, आमीन, प्रतिरोध (कहानी-संग्रह)। स्त्री-विमर्श से संबंधित दो पुस्तकों—मुस्कुराती औरतें और आजाद औरत कितनी आजाद  का सम्पादन किया।
उन्हें विजय वर्मा सम्मान, सरस्वती सम्मान, प्रेमचन्द सम्मान, महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान  से सम्मानित किया गया है।
सम्प्रति : ‘कथाक्रम’ पत्रिका का सम्पादन और स्वतन्त्र लेखन।

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