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आने वाले कल पर

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Aane Wale Kal Par
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"आने वाले कल पर - सुधांशु उपाध्याय के गीतों का यह तीसरा संकलन है। इस संकलन के गीतों में अपने समय का जीवन अपने पूरे वैविध्य के साथ रूपायित है। इसमें स्वयं को नीलाम करता आदमी हैं, जंगल में लकड़ी की तरह टूट-टूट जाने वाली आदिवासी औरतें हैं, छत के कुंडे से लटक गयी छोटी सी लव स्टोरी है, उजाले को नोच-नोच कर खा रही एक लम्बी काली रात है। तहख़ाने में बैठा दिन है, छुरियों की नोक पर खड़े, सपनों का चिथड़ा सहेजते लोग हैं, मिथुन-मूर्तियों से सजे सत्ता के गलियारे हैं, रईसों के घर हैं। तात्पर्य यह कि इन गीतों में वह सब कुछ है जिसे हम आज के जीवन की लय कह सकते हैं। .... वस्तुतः यह सम्पूर्ण जीवन विस्तार, जिसमें हम जी रहे हैं, एक मौन कविता है जिसे शब्द की ज़रूरत है। एक सन्नाटा है जो मुखर होना चाहता है। सुधांशु की सहानुभूति उन लोगों के साथ ज़्यादा गहरी है जो इतने विवश हैं कि 'आह' भी नहीं भर सकते। इस सन्दर्भ में 'लड़की ज़िन्दा है' और 'अम्मा एक कथा-गीत' शीर्षक कविताएँ उल्लेखनीय हैं। सहजता में गहरी अर्थ सांकेतिकता सुधांशु की कविताओं की विशेषता है। आज सत्ता और पूँजी के रेशमी जाल में सामान्य जन-जीवन ज़्यादा जटिल संघर्ष चक्र में छटपटा रहा है, कवि की अपनी निजी वेदनाएँ भी हैं जिनके शब्द-चित्र उसके गीतों में मौजूद हैं, फिर भी वह अपने सपनों को सहेजे हुए चल रहा है। आने वाले कल पर उसका भरोसा है और रेत में भटके हुए काफ़िलों को वह सोचने के लिए प्रेरित करता है। यह भविष्य-दृष्टि न केवल उसके इन गीतों को शक्ति देगी बल्कि आगे भी उसे सर्जनारत रहने की प्रेरणा देती रहेगी।—डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी "
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सुधांशु उपाध्याय (Sudhanshu Upadhyaya)

सुधांशु उपाध्याय जन्म : 04 दिसम्बर, 1955; ग़ाज़ीपुर के गाँव रामपुर में। शिक्षा :  प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में, उच्च शिक्षा वाराणसी में। एम.ए; पत्रकारिता में स्नातकोत्तर उपाधि। प्रारम्भ में अध्यापन फिर पत्रकारिता में सक्रिय।

प्रमुख कृतियाँ : ‘आनेवाले कल पर’, ‘समय की ज़रूरत है यह’, ‘पुल कभी ख़ाली नहीं मिलते’ (नवगीत-संग्रह); ‘शब्द हैं साखी’, ‘आधुनिक पत्रकारिता और ग्रामीण सन्‍दर्भ’ (पत्रकारिता)। ‘प्रयाग गौरव’ सहित कई पुरस्‍कारों से सम्मानित। ई-मेल : devgangotri@rediffmail.com

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