आओ पेपे घर चलें
प्रभा खेतान का यह उपन्यास आओ पेपे, घर चलें! मूलतः स्त्री-केन्द्रित उपन्यास है, जो अमेरिका की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है। इसमें प्रभा स्वयं उपस्थित हैं। यह उस समय की मार्मिक कहानी है, जब प्रभा सिर्फ़ 22 वर्ष की थीं और ब्यूटी थैरेपी का कोर्स करने अमेरिका गयी थीं।
प्रभा ने स्वयं निकट से वहाँ के भयावह सच को देखा जाना, बुरे-से-बुरे पहलुओं से साक्षात्कार किया और स्वप्निल अमेरिका जिस आकार में उभर कर सामने आया, उसने प्रभा को सन्त्रस्त कर दिया।
वास्तव में यह कहानी अमेरिकन वृद्धा आइलिन और उसके एलसेशियन कुत्ते पेपे के प्रसंगों के इर्द-गिर्द घूमती हुई आगे बढ़ती है । आइलिन रूखी और सख्त मिज़ाज है, पर उसके भीतर मानवीय संवेदना के स्रोत फूटे पड़ते हैं। पेपे उसके जिगर का टुकड़ा है, जैसे कि उसी का जन्मा बच्चा ।
और स्त्रियाँ भी हैं इसमें। हेल्गा है, जिसका घर टूट रहा है, पर वह विचलित नहीं, बिटिना है, जो माँ से जवाब तलब करने की क्षमता रखती है, कैथी जैसी जीवन्त महिला है, जिसे नीग्रो लोगों का घिराव नर्वस कर देता है, मिसेज़ डी. है, क्लारा है और भी स्त्रियाँ हैं, जो कथ्य को सुगठित बनाती हैं।
कुल मिलाकर यह उपन्यास असंगतियों से जूझते हुए मनुष्य की चुप्पी को चीख में बदलने का अहसास जगाता है।
Publication | Vani Prakashan |
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