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Vani Prakashan
आठवाँ सर्ग
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Aathavan Sarg
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"आठवाँ सर्ग -
सुरेन्द्र वर्मा नाट्य विधा में जयशंकर प्रसाद और मोहन राकेश की परम्परा के पदचिन्हों पर चलते रचनाकार माने जाते हैं। उनके द्वारा रचे गये नाटकों में समाज के विभिन्न पक्ष तो हैं ही बल्कि कुछ ऐसे तथ्य भी उनमें शामिल हैं जिनके द्वारा यह समझा जा सकता है कि श्लील और अश्लील की अवधारणा केवल एक मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति विशेष के विचारों पर निर्भर करती है।
आठवें सर्ग का नायक बुद्धिजीवी है। उसमें रचनात्मक तेज और ऊर्जा है। सात सर्ग वह लिख चुका है और आठवें सर्ग को लेकर उत्साहित है। लेकिन आठवाँ सर्ग दरबार में लोगों के समक्ष आ पाता उससे पूर्व ही नायक कालिदास पर अश्लीलता का आरोप लग जाता है।
आठवाँ सर्ग एक रचनाकार के मानसिक द्वन्द्व को दर्शाता है। आरोप-प्रत्यारोप और समाज तथा राजनैतिक दबावों के कारण एक लेखक द्वन्दात्मक मनोस्थिति में पहुँच जाता है, यहाँ तक कि वह अपने लेखन को उसी मोड़ पर त्यागने का निर्णय भी ले लेता है, इस मनोदशा को दिखाने में यह कृति पूर्णयता सफल रही है।
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Aathavan Sarg
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