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अब गरीबी हटाओ

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Ab Garibi Hatao
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शोषक की कुटिलता और अमानवीयता को 'ठोस' रूप में मंच पर मूर्तिमान करने के लिए मैंने ढाई-तीन फुटे शैलीकृत पुतलों का उपयोग किया था, जिनके सूत्र काले लबादों में ढँकी छायाओं के हाथों में थे। जबकि शोषित जन हाड़-मांस के सामान्य जन थे जो इन बौनों के सामने अधिकतर समय अपने घुटनों, पीठ या पेट पर घिसटने के लिए अभिशप्त थे। केवल जीवन की ललक में, संघर्ष के अहसास से पूरित क्षणों में ही वे 'तिरछे होकर' खड़े हो जाते थे। पुतलों और अभिनेताओं के बीच का व्यापार मंच पर अद्भुत नाटकीय तनाव की सृष्टि करता था।नाटक में प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से अपार सम्भावनाएँ हैं-और कोई भी कल्पनाशील निर्देशक इसे कई रूपों में मंच पर प्रस्तुत कर सकता है।भानुभारती, निर्देशक
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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर, 1927 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ।

आपने इलाहाबाद से बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

जीविकोपार्जन के लिए मास्टर, क्लर्क, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ में प्रमुख उप-सम्पादक और फिर कुछ दिनों ‘पराग’ के सम्पादक। ‘तीसरा सप्तक’ के कवि और ‘नई कविता’ के अधिष्ठाता शीर्षस्थ कवियों में एक।

आपकी प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘काठ की घंटियाँ’, ‘बाँस का पुल’, ‘एक सूनी नाव’, ‘गर्म हवाएँ’ (बाद में ये चारों कविता-संग्रह क्रमशः ‘कविताएँ : एक’ और ‘कविताएँ : दो’ में संकलित व प्रकाशित), ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूँटियों पर टँगे लोग’, ‘कोई मेरे साथ चले’ (कविता-संग्रह); ‘उड़े हुए रंग’ (उपन्यास); ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’ (लघु उपन्यास); ‘लड़ाई’, ‘अँधेरे पर अँधेरा’ (कहानी); ‘बकरी’ (नाटक); ‘बतूता का जूता’, ‘महँगू की टाई’, ‘बिल्ली के बच्चे’ (बाल-कविता); ‘कुछ रंग, कुछ गंध’ (यात्रा-संस्मरण) ‘शमशेर’, ‘नेपाली कविताएँ’, ‘अँधेरा का हिसाब’ आदि (सम्पादन)।

आपकी रचनाएँ भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, जर्मन, पोलिश, चेक आदि भाषाओं में अनूदित।

‘खूँटियों पर टँगे लोग’ के लिए 1983 के 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' से सम्मानित किए गए।

24 सितम्बर, 1983 को नई दिल्ली में निधन।    

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