अब्दुर्रहीम खानेखाना काव्य सौन्दर्य और सार्थक
अब्दुर्रहीम ख़ानेखाना (1566.1627) जैसा कवि हिन्दी में दूसरा नहीं हुआ। एक ओर तो वे शहंशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में थे और उनके मुख्य सिपहसालार जो अरबी, फारसी और तुर्की भाषाओं में निष्णात थे, और दूसरी ओर साधारण जन-जीवन से जुड़े सरस कवि जिनके ब्रज और अवधी में लिखे दोहे और बरवै अब भी अनेक काव्य-प्रेमियों को कण्ठस्थ हैं। रहीम लोकप्रिय तो अवश्य रहे हैं पर स्कूल में पढ़ाये उन्हीं दस-बारह दोहों के आधार पर जिनका स्वर अधिकतर नीति–परक और उपदेशात्मक है। उनके विशद और विविध काव्य-कलेवर से कम लोग ही परिचित हैं जिसमें भक्ति-भावना है तो व्यंग्य-विनोद भी, नीति है तो शृंगार भी, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों का निचोड़ है तो अनेक भाषाओं के मिले-जुले अद्भुत प्रयोग भी। साथ ही उन्होंने विभिन्न जातियों और व्यवसायों की कामकाजी महिलाओं का जैसा सजीव व सरस वर्णन किया है वह पूरे रीतिकाल में दुर्लभ है। उनके सम्पूर्ण कवि-कर्म की ऐसी इन्द्रधनुषी छटा की इस पुस्तक में विस्तृत बानगी मिलेगी। उनके 300 से भी अधिक दोहे, बरवै, व अन्य छन्दों में रचित पद यहाँ सरल व्याख्या के साथ संकलित हैं। इसके अतिरिक्त उनकी कविता के विभिन्न पक्षों पर केन्द्रित और हिन्दी के ख्याति-लब्ध विद्वानों द्वारा लिखित ग्यारह निबन्ध भी यहाँ संयोजित हैं। जो सभी पाठकों को रहीम की कविता को समझने और सराहने की नयी दृष्टि देंगे।