साधारण समाज की रगों से निचुड़ा खून-पसीना राजनीति की मशीन में पहुँच कर किस प्रकार एक 'भव्य अभिनन्दन' बन कर 'कुछ' व्यक्तियों की सत्ता का आधारस्तम्भ बन जाता है-इस कटु तथ्य के आस-पास बुने ताने-बाने से यह उपन्यास-कृति निर्मित है। ...सभी चेहरे हमारे-आपके जाने-पहचाने से लगते हैं। नाम कुछ और होंगे, जगहें कुछ और होंगी...घटनाओं का क्रम भी इसी प्रकार न हो तो क्या हुआ? हमारी सामाजिक-साहित्यिक-राजनीतिक विडम्बना-भरी जिन्दगी पर एकदम अछूता और करारा व्यंग्य।
जन्म : 30 जून, 1911 (ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन); ग्राम—तरौनी, ज़िला—दरभंगा (बिहार)।
शिक्षा : परम्परागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा।
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार। हिन्दी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में काव्य-रचना। पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’। मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से ही लेखन। शिक्षा-समाप्ति के बाद घुमक्कड़ी का निर्णय। गृहस्थ होकर भी रमते-राम। स्वभाव से आवेगशील, जीवन्त और फक्कड़। राजनीति और जनता के मुक्तिसंघर्षों में सक्रिय और रचनात्मक हिस्सेदारी। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा मध्य प्रदेश और बिहार के ‘शिखर सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित।
प्रमुख कृतियाँ : ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘बलचनमा’, ‘वरुण के बेटे’, ‘नई पौध आदि’ (उपन्यास); ‘युगधारा’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘हज़ार-हज़ार बाँहोंवाली’, ‘पका है यह कटहल’, ‘अपने खेत में’, ‘मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा’ (कविता-संग्रह); ‘भस्मांकुर’, ‘भूमिजा’ (खंडकाव्य); ‘चित्रा’, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (हिन्दी में भी अनूदित मैथिली कविता-संग्रह); ‘पारो’ (मैथिली उपन्यास); ‘धर्मलोक शतकम्’ (संस्कृत काव्य) तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियाँ।