Abhinay Chintan
अभिनय में किसी पद्धति या मत के सहारे व्यावहारिक अभिनय की खोज हमारे सामने प्रक्रिया के नये द्वार तो ज़रूर खोलती है, फिर भी, अभिनय की दुनिया में कोई भी दरवाज़ा आख़िरी दरवाज़ा नहीं होता। जब हम अभिनय करते हुए किसी अनुभव से गुज़रकर किसी मुकाम पर पहुँचते हैं तब अपने से एक सवाल करते है कि क्या सीखा या फिर कैसा अनुभव रहा, तो इतना कहा जा सकता है कि कुछ पहले से साफ़ रोशनी, कुछ पहले से अधिक विस्तार और सच को समझने की दिशा में आगे एक क़दम ।
स्तानिस्लाव्स्की, ग्रोतोव्स्की और आर्तो इन तीनों के रंगमंच के सरोकार और उद्देश्य लगभग एक ही रहे हैं; भले ही इनके रास्ते अलग-अलग दिशाओं से होकर आते हैं। रंगमंच इनके लिए मात्र मनोरंजन नहीं था वरन एक सामाजिक, नैतिक शिक्षा का माध्यम था । जो सत्य धर्म से जुड़ी सेवा भाव की मानवीय कला है। उसके लिए ये आजीवन प्रयासरत रहे।
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र, पश्चिम के यूनानी रंगमंच का जीवन दर्शन। बीसवीं शताब्दी में पूर्वी और पश्चिमी रंगमंच के जुड़ाव से इतना तो समझ में आता है कि पूरब और पश्चिम के रंगमंच को अगर आर्तो के नज़रिये से देखें तो वह मानव को सत्य मार्ग दिखाने के लिए था । जिसकी सार्थकता आज भी अनिवार्य जान पड़ती है।
Publication | Vani Prakashan |
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