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अभिनय नाटक मंच

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कला और जीवन
कला स्वाभाविक नहीं होती, होती है मन की इच्छा को पूरी करने की वस्तु । स्वाभाविक जगत को स्वीकार करने के बाद ही कलात्मक साधारण भंगिमाओं का सृजन सम्भव है । जितने बड़े रूप में, जितनी गहराई में जाकर जीवन को जाना जायेगा, उतना ही श्रेष्ठ सृजन सम्भव होगा ।
बांग्ला थियेटर
हम लोगों के भंडार में भी गहरी भावाभिव्यक्ति के लिए ऐसे तरीक़े थे लेकिन यथोचित उपयोग के अभाव में वे लुप्त हो गये। आज आवश्यकता है कि भंडार घर में बैठकर हम अपनी पूरी सम्पत्ति की खोज-ख़बर लें और उन्हें घिस-माँजकर देखें, जो आज काम में आने लायक हों, उन्हें काम में लें।
अभिनय क्या होता है
स्वयं को स्वयं से बाहर रखकर देखने से अपनी त्रुटियाँ पकड़ में आ जाती हैं। इन त्रुटियों के बाहर रोशनी में आते ही इनकी नुक़सान पहुँचाने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। मनो-निरीक्षण (साइकोएनालिसिस) द्वारा उपचार की यही विधि होती है।
हमारा कर्तव्य
आज हमारा कर्तव्य है कि हम घास को रौंद-रौंदकर एक टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी जैसी तैयार कर दें जो भविष्य में एक रास्ते का स्पष्ट इंगित दे। जब प्रतिभा का विकास होगा तब हम उस कच्चे रास्ते पर रोलर चलाकर नयी सड़क बना लेंगे। हमारा कर्तव्य है कि उस प्रतिभा के लिए उपयुक्त परिवेश तैयार कर रखना।

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