अच्छा तो तुम यहाँ हो - राजेन्द्र क़रीने के कथाकार हैं। जन और जीवन से उन्हें गहरा लगाव है और वे कहानियों का 'कंटेंट’ इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं में तलाशते हैं। उनकी क़लम बदी की मुख़ालिफ़ और नेकी की हिमायती है। मानवीय रिश्तों और मनुष्यत्व की गरिमा में उनका गहरा यक़ीन है। लोक के वृत्त में रहते हुए चीज़ों का सन्धान करने की कला उनके पास है और उनका यह हुनर उनकी कहानियों में बख़ूबी झलकता है। चाहे 'अच्छा तो तुम यहाँ हो' के स्त्री-पुरुष हों या 'जयहिन्द' के कलेक्टर या कमांडर अथवा 'पाइपर माउस' का नायक चूहा, वे हमें बेहद अपने लगते हैं, हमारे अपने बीच के परिचित और जाने-पहचाने। राजेन्द्र घटनाओं और संवादों की लटों से कहानी को बहुत जतन से गूँथते हैं। उनकी भाषा उनका साथ देती है। वे कहीं लड़खड़ाते नहीं और न ही हड़बड़ी में भागते दीखते हैं। सधी हुई चाल, न प्रकम्प, न उतावलापन। वे तनाव और लगाव दोनों को बहुत सलीके से व्यक्त करते हैं। वे अपनी ओर से नहीं बोलते, बल्कि वाक़ये और किरदार बोलते हैं। उनके पात्र पाठक को अपने साथ-साथ देर और दूर तलक ले चलने की क़ुव्वत रखते हैं। यही नहीं, इस यात्रा के बाद पाठक के लिए उन्हें भूल पाना मुमकिन नहीं हो पाता। राजेन्द्र शब्दों को विचारों की मद्धिम आँच में पकाते हैं। वे रिश्तों की सान्द्रता को चीन्हते हैं और क़लम से रिश्तों की देह में धँसी किरचों को बीनते हैं। उनकी कथायात्रा हताशा, नैराश्य, अवसाद अथवा पलायन के साथ समाप्त नहीं होती, वह साहसपूर्वक आगे की यात्रा की भूमिका रचती है। राजेन्द्र यथार्थ से मुठभेड़ के साहसी और चेतस कथाकार हैं और समाज और व्यवस्था के खोट और खुरंट को उजागर करने से नहीं चूकते। वे चुहल भी करते हैं और तंज़ भी कसते हैं। इन लम्बी कहानियों में वे कहीं भी शिथिलता या स्फीति के शिकार नहीं होते। आज के समय की ये कहानियाँ समकालीन कथा जगत को समृद्ध करती हैं।——डॉ. सुधीर सक्सेना
जन्म : 5 नवम्बर, 1953; जबलपुर (म.प्र.)। शिक्षा : रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि, बी.एड.। राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा नेट, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रूरल डेवलपमेंट, इग्नू, दिल्ली। अध्यापन के क्षेत्र में आजीविका की शुरुआत। ‘परिक्रमा’ पर्यावरण शिक्षा संस्थान के निदेशक के रूप में सक्रिय रहे। राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन मिशन मध्यप्रदेश शासन के परियोजना अधिकारी के रूप में 1997-2003 तक वाटरशेड प्रबन्धन का सफल क्रियान्वयन। आकाशवाणी, जबलपुर से पर्यावरण रेडियो पत्रिका ‘ताकि बची रहे हरियाली’ का 1992 से 1999 तक सम्पादन। ‘कृषि परिक्रमा कार्यक्रम’ का संयोजन तथा आकाशवाणी, जबलपुर के लिए ही औषधीय फ़सलों की कृषि विधि पर आधारित ‘उत्तम : स्वास्थ्य’ कार्यक्रम हेतु 13 एपिसोड का स्क्रिप्ट-लेखन। नाटक : ‘सहस्रबाहु’ का प्रसारण, ‘त्रिपुरी की इतिहास गाथा’ शीर्षक के 13 एपिसोड का स्क्रिप्ट-लेखन। ‘नवभारत’ तथा ‘नवभास्कर’ समाचार-पत्रों में साप्ताहिक स्तम्भ-लेखन। अनेक नाटकों, नुक्कड़ नाटकों में अभिनय एवं निर्देशन। मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली की जूनियर फ़ेलोशिप—1992 के अन्तर्गत उपन्यास-लेखन। प्रमुख कृतियाँ : ‘इतिहास के झरोखे से’, ‘कल्चुरि राजवंश का इतिहास’, ‘कामकंदला’ (उपन्यास); ‘बेगम बिन बादशाह’ (कहानी-संग्रह); ‘दिन फेरें घूरे के’, ‘बिन बुलाए मेहमान’, ‘क्योंकि मनुष्य एक विवेकवान प्राणी है’, ‘आओ पकड़ें टोंटी चोर’, ‘तरला-तरला तितली आई’, ‘काले मेघा पानी दे’, ‘चलो करें वन का प्रबन्धन’ (नुक्कड़ नाटक) तथा ‘सामान्य पर्यावरण ज्ञान’, ‘पेड़ों ने पहने कपड़े हरे’ (पर्यावरण गीत) आदि। कुछ कहानियों का तमिल तथा तेलुगू भाषा में अनुवाद।