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अद्भुत प्रेमकथाएँ

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प्रेमकथा के अद्भुत शिल्पी, हिन्दी के जीनियस साहित्यकार कीर्तिकुमार सिंह की हमेशा से लीक छोड़कर चलने की आदत रही है। बने बनाये रास्ते पर चलना उन्हें पसन्द नहीं। साहित्य की जिस भी विधा में उन्होंने कलम चलायी, वहाँ उन्होंने कुछ न कुछ अलग किया। कविता में उन्होंने जहाँ 'सहजतावाद' आन्दोलन का प्रवर्तन किया, वहीं लघुकथा में उत्कृष्ट लघुकथाओं की झड़ी लगा दी। उनकी लम्बी कहानियाँ भी अलग हैं। अभी तक जहाँ हिन्दी के कथाकार प्रेमकथा संग्रह छपाने से हिचकते थे, कीर्तिकुमार सिंह का यह चौथा प्रेमकथा संग्रह है। इसके पूर्व उनके तीन प्रेमकथा संग्रह-'दारागंज वाया कटरा', 'आप बहुत......बहुत....... सुन्दर हैं!', 'असाधारण प्रेम कथाएँ' प्रकाशित हो चके हैं। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्य में वही सब दर्ज हो रहा है, जो समाज में सर्वत्र बिखरा है। कीर्तिकुमार सिंह का मानना है कि समाज में एक प्रकार का अंडबंडपन भी व्याप्त है, जो साहित्य में नहीं दर्ज हो रहा है। समाज के अंडबंड कोनों में झाँकने के लिए एक खुराफ़ाती दिमाग़ चाहिए। इसीलिए कीर्तिकमार सिंह की प्रेमकथाओं में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के एक से एक विचित्र आयाम उभरकर सामने आते हैं, जिन्हें पढ़कर लगता है कि हाँ, ऐसा होता तो है लेकिन पहले कभी पढ़ा नहीं। उनकी प्रेमकथाओं की एक और विशेषता है। किसी भी दो प्रेमकथा की कथा-वस्तु में किसी तरह का कोई साम्य नहीं होता। हर कथा की कथावस्तु एक नये और अलग ढंग की होती है तथा हर कथा की बुनावट भी भिन्न तरीके की होती है। इन्हीं के चलते उनकी प्रेम कथाएँ पाठकों में बहत लोकप्रिय हैं। कीर्तिकुमार सिंह की प्रेमकथाओं की एक विशेषता होती है, उनका लम्बा होना। वे प्रयास करके इन कहानियों को लघ उपन्यास में परिवर्तित कर सकते थे। अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो हिन्दी को कई पठनीय उपन्यास मिल सकते थे। पता नहीं उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? 'अद्भुत प्रेम कथाएँ' की कहानियों की सबसे आकर्षक विशेषता है उनकी पठनीयता। कहानियाँ इतनी रोचक शली। में लिखी गयी हैं कि पाठक उन्हें बीच में नहीं छोड़ सकता। पाठक एक बार किसी कहानी को पढ़ना शुरू करे तो कहानी। अपने को जबर्दस्ती पढ़वा लेगी। अपनी बुनावट में वे जादुई है। किसी भी कथाकार की यह विशेषता उसे विशेष बनाती है और इसमें कोई दो राय नहीं कि कीर्तिकुमार सिंह हिन्दी के एक विशेष कथाकार हैं।

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कीर्तिकुमार सिंह (Kirtikumar Singh)

कीर्तिकुमार सिंह जन्म : 19 मई 1964 को इलाहाबाद जिले के कोटवा नामक गाँव में। शिक्षा : बी.ए., एम.ए. और डी. फिल. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से। शिक्षा में एक मेधावी छात्र के रूप में कई स्वर्ण पदक प्राप्त, जिनमें से एक स्वर्ण पदक 'संयुक्त राष्ट्र संघ' से। कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास और दर्शन के क्षेत्र में सक्रिय। प्रकाशित कृतियाँ : 'उस कविता को नमस्कार करते हुए', 'कीर्तिकुमार सिंह की दार्शनिक कविताएँ', 'मन्दाकिनी घाटी', 'दिल्ली के दो-पाया कुत्ते' (कविता संग्रह); 'शिवा' (कविता-कैसेट); 'बस इतना', 'दास्तान दर दास्तान', 'दारागंज वाया कटरा', 'आप बहुत...बहुत...सुन्दर हैं', 'असाधारण प्रेम कथाएँ' (कहानी संग्रह); 'एक टुकड़ा रोशनी', 'अधूरी दास्तान', 'छोटी सी बात' (लघुकथा संग्रह); 'पुरस्कार दर्शन', 'भारतीय दर्शन में दुःख और मुक्ति' (दार्शनिक चिन्तन); उपन्यास (शीघ्र प्रकाश्य)। सम्प्रति : अध्यक्ष, दर्शन विभाग, श्यामाप्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) फाफामऊ, इलाहाबाद। सम्पर्क : 15/6, स्टैनली रोड, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद-211001 (उत्तर प्रदेश)।

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