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Vani Prakashan
अधजले ठुड्डे
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"कनाडा की पृष्ठभूमि और भारत की भावभूमि पर लिखी हंसा दीप की कहानियाँ आश्वस्त करती हैं। कथाकार की गहरी अनुभूतियों, अनवरत सृजनशीलता का ही प्रतिफल है कि वे समाज की विसंगतियों, प्रलोभनों, उसके भीतर छुपे बैठे प्रपंचों और अन्तर्विरोधों को इतनी सहजता से अपनी कहानियों में पिरोती हैं कि पाठक आद्योपान्त पढ़ता चला जाता है।
'एक बटे तीन' कहानी विदेश में प्रवास कर रहे चौथे भाई को पैतृक सम्पत्ति की हिस्सेदारी से बड़ी कुटिलता से अलग करने की कहानी है। भारत में रह रहे तीन भाइयों का फ़रेब और माँ के अतुल्य लाड़ का द्वन्द्व कहानी को जीवन्त कर देता है। 'लाइलाज' कहानी अपने आप में लाजवाब है। चार साल की बच्ची जिसका भारत में कहीं इलाज नहीं होता है, कनाडा का एक चिकित्सक बिना औषधि, सुई के दिनचर्या का चार्ट बनाकर ही बच्ची का इलाज कर देता है। 'शून्य के भीतर' कहानी में एक महिला डॉक्टर के वृद्धावस्था के एकाकीपन को इस शिद्दत से बुना गया है कि बिल्ली, गिलहरी, पपी और रैकून जैसे मानवेतर प्राणी केन्द्रीय बन जाते हैं। कहानी के अन्त में जो संवेदनशीलता प्रकट होती है, वह पाठक को संवेदित कर देती है।
पुस्तक में संगृहित उनकी तमाम कहानियों में यथास्थान आई काव्यात्मकता को ग्राह्य और पठनीय बना देती है। भूमण्डलीकरण और बाज़ारवाद के क्रूर दौर में भी ये कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं से सरोकार रखती हैं कहानियों में कथारस, शिल्प सौष्ठव, भाषायी वैशिष्ट्य, मुहावरे और लोकोक्तियाँ तथा सूक्त वाक्य हंसा दीप की कहानियों की विशेषता हैं जो उनको अन्य कहानीकारों से अलग पहचान देते हैं। हंसा दीप की कहानियाँ इक्कीसवीं सदी की आहट हैं।
- रत्नकुमार साम्भरिया
★★★
प्रवासी ज़मीन पर खिलता मन समुद्री लहरों की हलचल से जीवन के कथानक रचता रहता है। हंसा दीप की स्मृतियों में भारत तो स्पन्दित है ही, पर कनाडाई जीवन और देश-देशान्तर को सहेजती अटलांटिक लहरों का परस भी मुखर है। अलबत्ता लहरों के नीचे चुम्बकीय चट्टान है, जिससे प्रवास-भूमि से लगाव संकर्षित रहता है। वे रंगभेदी नस्लों के ब्लैक-ब्राउन - श्वेत में मिले रागों को सँजोती हैं, जो चरित्र और कर्मठता में उजले हैं—“मैंने ब्लैकनेस को अपने जीवन के अन्दर उतारा है। यह मेरी तरह हर रंग को अपने में सोख लेता है।” इनमें वे रंग भी हैं, जो मूल देशों की सरहदों के टकराव, नस्लों-जातियों और राष्ट्रीयताओं से टकराकर घुलते-मिलते हैं। फिर कॉफ़ी और क्रीम के अलग रंगों के बावजूद एकाकार हो जाते हैं।
इन कथाओं में पाठक सहयात्री बना रहता है। प्रकृति और आसमान के रंग भी पात्रों की मनःस्थितियों में थिरके हैं। सामाजिक संवेदनशीलता और नागरिक जागरूकता के गहरे रंगों के बावजूद अकेलेपन के उदास रंग जन-जीवन का हिस्सा हैं। पारिवारिक टकराव के त्रिकोण की बिखरी रेखाएँ भी हैं, तो कभी न मिलने वाली समान्तर पटरियाँ भी । जीवन के ताप भी हैं और अधिकार की जागरूक मानसिकता भी, पर अनजान लोगों के जीवन को बचाने और ख़तरों में समर्पित करने का माद्दा भी है। चरित्रों का जीवन, परिवेश, मनोविज्ञान, सामाजिक एवं प्राकृतिक भूगोल ऐसे प्लाट्स रचते हैं, जो विशिष्ट पहचान बनते हैं। इस मायने में ये कथानक स्पर्शिल भी हैं, प्रवासी समाजशास्त्र की विशिष्टता और लोकजीवन का स्पन्द भी। सिगरेट के जलते-कुचलते ये ठुड्डे चरित्रों की चेतना को रेखांकित करते पाठकीय प्रतिबोध का हिस्सा बन जाते हैं।
- प्रो. बी.एल. आच्छा
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Adhjale Thudde
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Vani Prakashan
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