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आइना-मुआइना

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आइना-मुआइना -
मुंडे जी बात-बात में बड़ी बात कह जाते हैं। यह उनका स्टाइल भी है और ख़ूबी भी। शायद, अच्छा शायर ऐसे ही शायर को कहा जाता है। वे सिर्फ़ शायरी में ही नहीं, बल्कि आम ज़िन्दगी में भी एक ख़ास रख-रखाव के क़ायल हैं। उनका यह स्वभाव, यह मिजाज़ यक़ीनन इस मिट्टी की देन है जिसे हम महाराष्ट्र की मिट्टी कहते हैं, महाराष्ट्र की सरज़मीन को सलाम कि जहाँ से इतना अच्छा इन्सान और इतना अच्छा शायर उभर कर भारत की शान बढ़ा रहा है। एक ज़िम्मेदार सरकारी अफ़सर होने की वजह से, माणिक मुंडे साहब की एक मज़बूरी यह भी है, कि वो ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान नहीं दे सकते। उनके मिजाज़ की सच्चाई जगह-जगह उनकी कविताओं में देखने को मिलती है। उनकी शायरी ग़ालिब की तरह ज़रा मुश्किल तो है, मगर थोड़ी-सी कोशिश के बाद जो मोती हाथ आते हैं, वो वाकयातन नायाब होते हैं। और मेहनत वसूल जाती है।

एक तरफ़ दिल की धड़कनें सुनाई देती हैं, वहीं दूसरी तरफ़ आनेवाले युग की समस्याएँ और दिशाएँ भी नज़र आती हैं। उनका दिमाग़ एक फ़िलॉसोफ़र का दिमाग़ है। शायद इसीलिए वो बड़ी-बड़ी बातें चन्द लफ़्ज़ों में और दिल को छू लेनेवाले अन्दाज़ में कामयाबी से कह जाते हैं। शायरी पर उनकी इस तरह मज़बूत गिरफ़्त से, अन्दाज़ा होता है कि उन्होंने इस फ़न पर क़ाबू पाने के लिए बड़ी मेहनत की है। और कहा जाता है कि मेहनत कभी जाया नहीं जाती।
-(उबैद आज़म आज़मी)

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Aina-Muaina
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Vani Prakashan
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माणिक मुण्डे (Manik Munde)

माणिक बाबुराव मुंडे - 
जन्म : 14 अक्तूबर, 1960; सोनहिवरा, ताल्लुका : परली-वैजनाथ, बीड, महाराष्ट्र
शिक्षा : एम.एससी. (कृषि)

लेखन - 
उपन्यास : लढा कुणाशी? (मराठी), आम्हीं डोंगरवासी (मराठी)
काव्य : मकरंद (मराठी), आइना-मुआइना (हिन्दी)।

 

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