अकबर - मुगल सल्तनत के सबसे ज़्यादा चमकते सितारे थे—अकबर। यह भी कहा जाता है कि यदि अकबर यहाँ शासन न कर रहे होते तो मुगल सल्तनत के पैर बहुत जल्द उखड़ जाते। लेखक ने अकबर के जन्म और उनके समय के हिन्दुस्तान का आकलन करते हुए यह जीवन कथा लिखी है। अकबर लोगों के बीच क्यों लोकप्रिय थे और हिन्दुस्तान में रहने वाली सम्पूर्ण हिन्दू जाति को अपने पक्ष में लाने के लिए उन्होंने क्या-क्या कार्य किये। लेखक ने इसे बड़े ही सलीके से रखा है। अकबर क्यों और कैसे थे—महान योद्धा, इस विषय पर भी लेखक ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। उस समय के राजा-महाराजाओं से भी अकबर के अच्छे ताल्लुक थे। यही वजह थी कि वे अपने विरोधियों को, विशेषकर बाहर के आक्रमणकारी-मुस्लिम आताताइयों को भी उन्होंने परास्त किया। एक तरफ़ लेखक ने देश-हित में अकबर की नीतियों की वाज़िब चर्चा की है तो दूसरी तरफ़ शासन की उन नीतियों पर भी उँगली रखी है, जो इस देश के माकूल नहीं थीं। यह किताब युवा साथियों को पसन्द आयेगी, ऐसी हमें पूरी उम्मीद है।
"विष्णु नागर -
जन्म 14 जून, 1950। बचपन और छात्र जीवन शाजापुर (मध्य प्रदेश) में बीता। 1971 से दिल्ली में स्वतन्त्र पत्रकारिता। 1974 ये 1997 तक 'नवभारत टाइम्स' के मुम्बई और फिर दिल्ली संस्करण में विशेष संवाददाता समेत विभिन्न पदों पर कार्य किया। इसी बीच जर्मनी में 'डॉयचे वैले' की हिन्दी सेवा में दो वर्ष तक सम्पादक। 1997 से 2002 तक 'हिन्दुस्तान' में विशेष संवाददाता और बाद में 'कादम्बिनी' मासिक के 2008 तक कार्यकारी सम्पादक। क़रीब दो वर्ष तक 'संडे नई दुनिया' के सम्पादक और क़रीब सवा तीन साल तक 'शुक्रवार' समाचार साप्ताहिक के सम्पादक। इस समय स्वतन्त्र लेखन।
7 कविता संग्रह, 8 कहानी संग्रह, 8 व्यंग्य संग्रह, एक उपन्यास, आलोचना और साक्षात्कार की पुस्तक समेत 7 लेख व निबन्ध संग्रह। 'सहमत' संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर पुस्तक का सह सम्पादन। सुदीप बनर्जी की कविताओं के चयन का सम्पादन लीलाधर मंडलोई के साथ। मृणाल पांडे के साथ कादम्बिनी में प्रकाशित हिन्दी के महत्वपूर्ण लेखकों द्वारा चयनित विश्व की श्रेष्ठ कहानियों का संचयन-'बोलता लिहाफ़'।
मध्य प्रदेश का शिखर सम्मान, शमशेर सम्मान, व्यंग्य श्री सम्मान, दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्य सम्मान, शिवकुमार मिश्र स्मृति सम्मान, उत्तर प्रदेश का पत्रकारिता शिरोमणि, रामनाथ गोयनका सम्मान आदि।
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