आलोचना का आत्मसंघर्ष - इस पुस्तक में मैनेजर पाण्डेय के आलोचना सम्बन्धी संघर्षों के विभिन्न मुद्दों व मोर्चों की आज की हिन्दी आलोचना में सक्रिय वरिष्ठ और युवा आलोचकों ने पहचान, व्याख्या और मूल्यांकन की कोशिश की है। उन आलोचकों में शिवकुमार मिश्र, रवि भूषण, सूर्यनारायण रणसुभे, प्रणय कृष्ण, रामबक्ष, गोपेश्वर सिंह, रोहिणी अग्रवाल, ज्योतिष जोशी, अरविन्द त्रिपाठी, आलोक पाण्डेय, वैभव सिंह, गजेन्द्र पाठक, पंकज चतुर्वेदी, अभिषेक रौशन, प्रभात कुमार मिश्र, राहुल सिंह, राकेश कुमार सिंह, मनोज कुमार मौर्य और राजीव कुमार प्रमुख हैं। इन आलोचकों ने मैनेजर पाण्डेय के आलोचनात्मक प्रयत्नों के मूल्यांकन की प्रक्रिया में समकालीन हिन्दी आलोचना के सामने मौजूद अनेक प्रश्नों, चुनौतियों और समस्याओं का व्यवस्थित विवेचन भी किया है। मैनेजर पाण्डेय के आलोचनात्मक लेखन में सिद्धान्त और व्यवहार, परम्परा और समकालीनता, सामाजिकता और साहित्यिकता, स्त्री-विमर्श और दलित-विमर्श आदि की जो एकता है उसकी खोज और पहचान की कोशिश इस पुस्तक में है।
उम्मीद है कि यह पुस्तक पाठकों को आज की हिन्दी आलोचना को समग्रता में देखने, जानने और उसकी सम्भावनाओं को पहचानने का अवसर प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी।
रवि रंजन - जन्म : 1962, मुज़फ़्फ़रपुर। शिक्षा : बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर से हिन्दी में एम.ए., हैदराबाद विश्वविद्यालय से एम.फिल. और पीएच.डी. अल्पकाल के लिए। उस्मानिया विश्वविद्यालय से सम्बद्ध। हिन्दी महाविद्यालय स्नातकोत्तर केन्द्र में अध्यापन। 1995 से हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता, यहीं 1998 से रीडर तथा 2006 से प्रोफ़ेसर। 2005 से 2008 तक 'भारत अध्ययन केन्द्र', पेकिंग विश्वविद्यालय, बीजिंग में विज़िटिंग प्रोफेसर।
प्रकाशित पुस्तकें : नवगीत का विकास और राजेन्द्र प्रसाद सिंह, प्रगतिवादी कविता में वस्तु और रूप, सृजन और समीक्षा विविध आयाम, लोकप्रिय कविता का समाजशास्त्र अनमिल आखर (आलोचनात्मक निबन्ध संग्रह), भक्तिकाव्य का समाजशास्त्र और पद्मावत। विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में सौ से अधिक आलेख प्रकाशित।
सम्मान: 'सर्वश्रेष्ठ हिन्दी वक्ता' के रूप में 'डॉ. राजेन्द्र प्रसाद स्वर्णपदक' से सम्मानित।