अँधेरे की आत्मा - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मलयालम के चर्चित कथाकार एम.टी. वासुदेवन नायर के कहानी-संग्रह सामान्य जन की जिजीविषा की ओर संकेत है। 'अँधेरे की आत्मा' में ऐसे सामान्य जन की जिजीविषा की ओर संकेत है जो परिस्थितियों के दबाव में विवश ज़रूर दिखता है पर फिर भी विपरीत स्थितियों में निरन्तर संघर्षरत रहते हुए अपनी गरिमा पर आँच नहीं आने देता। इस तरह आम आदमी के स्वाभिमान को श्री नायर बहुत ख़ूबसूरती से उकेरते हैं और उसे हमारी स्मृतियों का अंग बना देते हैं। एक प्रगतिशील कथाकार होने के नाते श्री नायर उन सामाजिक विषमताओं पर प्रहार करते हैं जो मनुष्य को सहज रूप से जीने के अधिकार से वंचित करती हैं। सीधी-सहज शैली और उतनी ही सादी भाषा में अपने समृद्ध अनुभवों से वे कई यादगार चरित्रों से पाठक को रू-ब-रू कराते हैं। इन कहानियों में मलयाली समाज की काफ़ी कुछ बानगी हमें देखने को मिलती है। केरल की प्राकृतिक समृद्धि और माटी की उर्वर-आर्द्रता का अहसास भी होता चलता है। श्री नायर आभिजात्य समाज से कहीं ज़्यादा लोक-समाज से अपनी निकटता महसूस करते हैं, यही उनकी रचनात्मक शक्ति भी है जो इस संग्रह की कहानियों में सर्वत्र नज़र आती है।
"एम. टी. वासुदेवन नायर -
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री एम. टी. वासुदेवन नायर (साहित्य-जगत् में एम. टी. के नाम से प्रसिद्ध) का जन्म सन् 1933 में केरल प्रदेश के एक गाँव में हुआ। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज, पालघाट में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की। अमेरिका, रूस, जापान, चीन आदि अनेक देशों की यात्राएँ करनेवाले एम. टी. केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार, वायलार पुरस्कार, केरल साहित्य अकादेमी पुरस्कार से भी सम्मानित हुए हैं। वे फ़िल्म जगत् से भी सम्बद्ध रहे और पुरस्कृत हुए ।
एम. टी. के अब तक 8 उपन्यास, 18 कहानी संग्रह, 1 नाटक, 2 यात्रावृत्त और 3 समीक्षा-ग्रन्थ प्रकाशित हैं, जिनमें से अनेक विदेशी तथा भारतीय भाषाओं में अनूदित भी हो चुके हैं ।
सम्प्रति श्री नायर कालीकट स्थित मातृभूमि. प्रकाशन समूह से सम्बद्ध हैं।
सम्पर्क : 'सितारा' कोटरम रोड, कालीकट- 670006 (केरल)"