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अँधेरे से निकली कविताएँ

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अँधेरे से निकली कविताएँ' के.के. श्रीवास्तव की चुनिन्दा अंग्रेजी कविताओं का हिन्दी अनुवाद है। अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवादित अनेकों कविताओं में उनको बारम्बार पढ़ने का अद्भुत आकर्षण है क्योंकि इन कविताओं के लालित्य में मानव मन को सहज रूप से उद्वेलित करने वाली विविध सघन भावनाओं-दर्प, विषाद, हर्ष, उपेक्षा, घृणित स्वार्थ, कृत्रिम खोखलापन, आध्यात्मिक पाखंड, मर्मस्पर्शी वात्सल्य का एकाकीपन, अनैतिकता की दुर्गन्ध, रूढ़िवादी विसंगतियों का प्रभावकारी समावेश किया गया है। जो सम्बन्ध सुरभि का पुष्प से है, दीपक का रोशनी से है, श्वासों का जीवन से है वही अटूट सम्बन्ध प्रकृति का काव्य से है। प्रकृति के विविध रंग-रंगीले बिम्ब कविताओं को विभिन्न भावों से अनुप्राणित करते हैं।

के. के. श्रीवास्तव ने अंग्रेजी कविताओं की रचना उन्मुक्त शैली (Free Verse) में की है जिसके अन्तर्गत तुकबन्दी (Rhyme) तथा छन्द योजना (Rhythemic meter) को गौण रखकर विभिन्न मनोभावों को प्रधानता दी गयी है । निराला, मुक्तिबोध, त्रिलोचन, अज्ञेय आदि हिन्दी के छायावादी कवियों का प्रभाव भी श्रीवास्तव की कविताओं में कुछ सीमा तक परिलक्षित होता है। T.S. Eliot, W.B.Yeats, W. H. Auden, Jung, Kafka इत्यादि अंग्रेज़ी कवियों तथा यूरोपियन विचारकों का प्रभाव भी यहाँ देखा जा सकता है।

अन्ततोगत्वा, शास्त्र वाक्य “नहि मानुसात श्रेष्ठतरम इहि लोके" (मनुष्य से अधिक श्रेष्ठ इस लोक में कोई नहीं) तथा “रसात्मक वाक्यम काव्यम" के भाव कवि की कविताओं में परिलक्षित होते है। आशा है श्रीवास्तव की हिन्दी में अनुवादित कविताएँ पाठकों को भाव विभोर करेंगी।

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के.के. श्रीवास्तव (K.K. Srivastava)

के. के. श्रीवास्तव का जन्म 1960 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ था। उन्होंने 1982 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। 1983 में उन्होंने भारतीय लेखाएँ व लेखा परीक्षा सेवा में कार्यभार ग्रहण किया। वर्तमान में श्री के. के. श्रीवास्तव, केरल के प्रधान महालेखाकार के पद पर नियुक्त हैं। उनकी अंग्रेज़ी की तीन काव्य पुस्तकें 'इनिलेक्टिबल स्टिलनेस' (2005), 'एन आर्मलेस हैंडराइट्स' (2008, 2012 दूसरा संस्करण) तथा 'शेडॉज ऑफ़ द रियल' (2012) प्रकाशित हो चुकी हैं। 'अँधेरे से निकली कविताएँ' उनके तीनों अंग्रेज़ी किताबों से चुनी हुई 35 कविताओं की हिन्दी प्रस्तुति है, जिनका अनुवाद प्रो. नरदेव शर्मा तथा जसविन्दर सिंह ने किया है।

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