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अँधेरे से परे

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"प्रख्यात नाटककार सुरेन्द्र वर्मा का पहला उपन्यास है—‘अँधेरे से परे’। वैसे, किसी भी रचना के लिए 'पहला’ विशेषण बहुत बार ग़लतफ़हमी भी पैदा करता है।—लेकिन कम से कम सुरेन्द्र वर्मा के साथ ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है। यह बात बेसाख्ता कही जा सकती है कि 'अँधेरे से परे' एक समर्थ रचनाकार का अत्यन्त सशक्त उपन्यास है, जो उनके सही अर्थों में ‘सचेत कथाकार’ होने का एक मज़बूत प्रमाण है। आज की मजबूर भागती-हाँफती ज़िन्दगियों के आस-पास का बहुआयामी कथानक, उसकी तेज़-टटकी बेलौस भाषा और उसका ‘शिल्पहीन’ शिल्प, और कुल मिलाकर पूरे उपन्यास की बहुत भीतर तक बजती हुई गूँज-अँधेरे से परे के एक महत्त्वपूर्ण सार्थक उपन्यास होने-कहने के लिए काफ़ी है।... ★★★ सुबह की चाय तेरे बजाय आदमी चाहे कुछ पाय पर वो मज़ा नहीं आय! सहसा ठिठक गया, “ओह, यह तो कविता बन रही है।"" अन्दर ममा का स्वर सुनाई दिया। फिर बिन्दो की पुकार। इसी व्यग्रता के कारण सुबह इन लोगों के सामने पड़ने में संकोच होता है। इनके सामने दफ़्तर की व्यस्तता है। यह सुबह इनके लिए महज़ एक स्प्रिंग बोर्ड है, जहाँ से ये लम्बी व्यस्तता में छलाँग लगायेंगी। ये अपने कमरों के एकान्त से निकलेंगी और कार्यालय की सामूहिकता में लीन हो जायेंगी। इनका काम इनका हमदर्द है, जो अकेलेपन के तनाव से निजात दिलाता है। और मैं? साढ़े नौ बजे इनके निकलने के बाद जब घर और भी सूना हो जायेगा, जब सारा दिन कोरे काग़ज़ की तरह सामने आ पड़ेगा, वर्ग पहेली के रिक्त स्थानों के समान... कि भरो, क्या भर सकते हो? बायें से दायें-संकेत तीन...आपके सम्मुख कौन-सा है? लक्ष्य या भक्ष्य ? सिर्फ़ भक्ष्य ही भक्ष्य...यह उम्र, यह समय, यह अवसर...सबको खा चुका मैं... - पुस्तक का एक अंश "
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सुरेन्द्र वर्मा (Surendra Verma)

"सुरेन्द्र वर्मा - जन्म : 7 सितम्बर, 1941 शिक्षा : एम.ए. (भाषाविज्ञान) अभिरुचियाँ : प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति; रंगमंच तथा अन्तरराष्ट्रीय सिनेमा में गहरी दिलचस्पी। कृतियाँ : ‘मुग़ल महाभारत’, ‘तीन नाटक, सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’, ‘आठवाँ सर्ग’, ‘शकुन्तला की अँगूठी’, ‘क़ैद-ए-हयात’, ‘रति का कंगन’ (नाटक); ‘नींद क्यों रात भर नहीं आती’ (एकांकी); ‘जहाँ बारिश न हो’ (व्यंग्य); ‘प्यार की बातें’, ‘कितना सुन्दर जोड़ा’ (कहानी-संग्रह); ‘अँधेरे से परे’, ‘मुझे चाँद चाहिए’, ‘दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता’ और ‘काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से’ (उपन्यास) सम्मान : संगीत नाटक अकादेमी और साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित। "

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