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अन्तरंगता की भीतरी परतें

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सम्बन्धों का नाम ही समाज है। समाज से आगे फिर यह सिलसिला चलता ही जाता है। समाज, देश से बढ़ते अन्तर्देशीय होते हुए ही आज सारी दुनिया ‘ग्लोबल विलेज' में तब्दील हो गयी है। देखा जाये तो, सम्बन्ध ही सृष्टि का मूल है, लगातार जारी सम्बन्धों, रिश्ते-नातों का अनवरत सिलसिला जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुष्यों को आपस में जोड़ता है। मगर यह अन्तरंग सम्बन्ध.....? ज़ाहिर-सी बात है, आदम-हव्वा के पहले ‘अन्तरंग सम्बन्ध' ने ही इस सृष्टि का आगाज़ किया, इसलिए जब भी सम्बन्धों की बात की जाती है तो पहला सम्बन्ध आदिम स्त्री-पुरुष का ही स्वीकार किया जाता है। यह सम्बन्ध न सिर्फ़ मानव-जाति का आरम्भ है बल्कि जीवन के नैसर्गिक सुख का शिखर भी है। स्त्री-पुरुष में शारीरिक मिलन को कई तरह से परिभाषित किया गया है, जिसमें इसे चरमोत्कर्ष आनन्द की प्राप्ति भी कहा गया है, जिसमें असीम सुख में पलों के पश्चात् एक शून्य, एक अनन्तता का अहसास भी होता है, जो मनुष्य को विराटता से जोड़ देने की भी असीम क्षमता रखता है। -डॉ. जसविन्दर कौर बिन्द्रा

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डॉ. जसविन्दर कौर बिन्द्रा (Dr. Jasvinder Kaur Bindra)

डॉ. जसविन्दर कौर बिन्द्रा दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीतिशास्त्र तथा पंजाबी में एम. ए.। पंजाबी साहित्य में पीएच. डी.। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पंजाबी विभाग तथा अनेक कॉलेजों में अध्यापन-कार्य। हिन्दी-पंजाबी दोनों भाषाओं में समान अधिकार से आलोचना, अनुवाद तथा मौलिक रचनाएँ व बाल साहित्य रचयिता। अंग्रेजी, हिन्दी-पंजाबी में 35 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद, नेशनल बुक ट्रस्ट साहित्य अकादेमी, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला, वाणी प्रकाशन, भारतीय ज्ञानपीठ तथा अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशनों से पुस्तकें प्रकाशित। पंजाबी में आलोचना की तीन मौलिक पुस्तकें। पन्द्रह से अधिक पुस्तकें तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबन्ध व लेख शामिल तथा लगातार प्रकाशित। हिन्दी-पंजाबी की सभी स्तरीय तथा साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर आलोचना, समीक्षाएँ तथा अनुवाद प्रकाशित। पंजाबी अकादेमी दिल्ली के अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित।

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