सत्य की ओर इंगित करने के अनेक माध्यम हो सकते हैं। उनमें से एक कविता भी हो सकती है। दुःखों का चित्रण, विवशताओं का विवरण, विसंगतियों की व्याख्या, व्यवस्था एवं अव्यवस्था अभिव्यक्ति भर ही कविता की विषय-वस्तु नहीं हो सकते। इन दिनों कविता के कण्टेण्ट की व्यापकता में बहुत विस्तार हुआ है। रोज़ी-रोटी की चिन्ता से मुक्ति के बाद साहित्य सेवा करने वाले वर्गों एवं व्यक्तियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इसीलिए कई नये विषयों पर ढंग-ढंग की कविताएँ लिखी जा रही हैं। कल्पना की उड़ान की जगह अनुभव की आसक्ति अधिक त्वरा के साथ पैर जमाती जा रही है। संवेदना के स्थान पर जीवन में विवेक और बुद्धि का अधिक प्रयोग हो रहा है। विचार खुलकर सामने आ रहे हैं और इसलिए संघर्ष तेज़ होता जा रहा है, जो सामाजिक न्याय की सीमा लाँघकर वैयक्तिक न्याय तक पहुँचना चाहता है। हम सब यही चाहते भी हैं कि हमारे साथ 'न्याय' हो, इस न्याय की कई परिभाषाएँ देश और काल पर आधारित हो सकती हैं। इस संकलन की अधिकांश कविताओं की भावभूमि भी दार्शनिकता की है।
अशोक शाह
बिहार के सीवान में जन्म। शिक्षा आई.आई.टी. कानपुर एवं आई.आई.टी. दिल्ली से प्राप्त करने के उपरान्त एक वर्ष तक भारतीय रेलवे इंजिनियरिंग सेवा में कार्य किया। 1990 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदार्पण कर मध्य प्रदेश के 10 से अधिक जिलों में विभिन्न पदों पर कार्य किया। प्रकाशित कृतियाँ : माँ के छोटे घर के लिए, उनके सपने सच हों, समय मेरा घर है, समय की पीठ पर हस्ताक्षर है दुनिया, समय के पार चलो, पिता का आकाश, जंगल राग, अनुभव का मुँह पीछे है, ब्रह्मांड एक आवाज़ है, उफ़क़ के पार, कहानी एक कही हुई, उसी मोड़ पर तथा जब बोलना ज़रूरी हो (कविता संग्रह); The Grandeur of Granite : Shiva-Yogini Temples of Vyas Bhadora, Ashapuri : The Cradle of Paramara and Pratihara Art : Temples Unveiled (पुरातत्त्व); Total Eternal Reflection (दर्शन एवं अध्यात्म)।
सम्पादन : 'बैगानी शब्दकोश', 'भिलाली शब्दकोश', 'बारेली शब्दकोश', 'पारम्परिक बैगानी गीत', 'हिरौदी मुंदरी बैगानी मौखिक कथाएँ', 'ढंगना बैगा चित्रांकन परम्परा', 'जनजातीय चित्रशिल्प', 'प्रकृति पूजा का पर्व इंदल', 'मध्य प्रदेश की जनजातियाँ', 'अगरिया'।
अनियतकालीन लघु पत्रिका 'यावत्' का सम्पादन।