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अनुप्रयुक्त राजभाषा

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Anuprayukt Rajbhasha
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अनुप्रयुक्त राजभाषा - 
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो अमरीका के राष्ट्रपति ने अपने सुरक्षा अधिकारियों को हिन्दी सीखने के निर्देश दिये हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन हिन्दी वाक्य से किया था। विश्व के सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है।
विदेशों में जो छात्र-छात्राएँ पढ़ने के लिए जा रहे हैं, वे सभी, तथा कुछ पढ़ लिखकर वहीं रोज़गार पा जाते हैं तथा कुछ घर भी बना लेते हैं, उन सभी की सम्पर्क भाषा हिन्दी ही रहती है इसलिए आज हिन्दी की उपादेयता बढ़ी है।
लाभप्रदता भी हिन्दी के कारण बढ़ती है क्योंकि हिन्दी का उपभोक्ता वर्ग संसार में सबसे बड़ा है इसलिए राष्ट्रीय व बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी हिन्दी को अपना रही हैं। हिन्दी के कारण उनकी लाभप्रदता में बढ़ोतरी हुई है।
इस पुस्तक के लिखने की पृष्ठभूमि में प्रयोजन भी यही रहा है कि सभी वर्ग के लोग चाहे वे विद्यार्थी हों, शोधार्थी हों, या फिर हिन्दी में रुचि रखने वाले आमजन उनको इस पुस्तक में एक जगह सभी सामग्री मिल जायेगी। इस पुस्तक में हिन्दी की उत्पत्ति-विकास, इतिहास, काव्यशास्त्र व संघ की भाषा नीति की सामान्य जानकारी दी गयी है। इसके साथ हिन्दी के प्रचार प्रसार से जुड़ी समितियों व संस्थानों की भी जानकारी दी गयी है। सभी वर्गों के लिए ज्ञानवर्द्धक व पठनीय पुस्तक।

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डॉ. मयंक मुरारी (Dr. Mayank Murari)

"डॉ. मयंक मुरारी आधुनिक समय में भारतीय समाज तथा जीवन, इतिहास, परम्परा और दर्शन विषय पर लिखते हैं। अपने 30 सालों के सार्वजनिक जीवन में अख़बारों एवं पत्रिकाओं में अब तक 600 से अधिक आलेख और एक दर्जन किताबें लिख चुके हैं, जिनमें मानववाद एवं राजव्यवस्था, राजनीति एवं प्रशासन, भारत-एक सनातन राष्ट्र, माई-एक जीवनी, झारखण्ड के अनजाने खेल, झारखण्ड की लोक कथाएँ, लोक जीवन (पहचान, परम्परा और प्रतिमान), यात्रा बीच ठहरे क़दम (काव्य-संग्रह), ओ जीवन के शाश्वत साथी, पुरुषोत्तम की पदयात्रा, अच्छाई की खोज, भगवा ध्वज, जंबूद्वीपे भरतखण्डे आदि शामिल हैं। उन्होंने ग्रामीण विकास, प्रबन्धन, जनसम्पर्क एवं पत्रकारिता के अलावा राजनीति शास्त्र में उच्च शिक्षा, स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद विकास के वैकल्पिक माध्यम पर पीएच.डी. किया। उनके कार्यों एवं योगदान के लिए 'विद्यावाचस्पति', 'सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान', ‘झारखण्ड रत्न’, ‘जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान', 'साहित्य अकादमी रामदयाल मुंडा कथेतर सम्मान', लायंस क्लब ऑफ़ राँची की ओर से समाज सेवा के लिए अन्य संस्थाओं के द्वारा कई सम्मान एवं पुरस्कार दिये गये हैं। व्यक्तित्व विकास, प्रेरणा और संवाद के अलावा भारतीय परम्परा एवं जीवन पर विभिन्न विद्यालय एवं संस्थान में व्याख्यान देते हैं। इसके अलावा उनका आध्यात्मिक और भारतीय दर्शन पर आधारित आलेख देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होता है। पता : राँची, झारखण्ड "

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