अपने ही होने पर
अपने ही होने पर
'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित मराठी के किवदन्ती कवि विंदा करंदीकर के काव्य-संसार में वैविध्य और गहनता, मौलिकता और ताजगी, विराट और उन्मुक्त कल्पनाशीलता, उपहास और विडम्बना, अध्यात्म और लौकिकता एक साथ अपनी पराकाष्ठा में हैं। युद्ध और संहार के प्रति तीव्र घृणा व्यक्त करने वाली उनकी कविताएँ पूरी शिद्दत के साथ जिन्दगी के रू-ब-रू खड़ी होती है।
विंदा आद्योपांत ताजगी और नवीनता से भरे हैं. प्रयोग को बेचैनी उनमें इस कदर है कि हर नया संग्रह दूसरे से अलग दिखाई देता है न सिर्फ शिल्प में, वस्तु में भी।
श्री करंदीकर को प्रेम कविताओं में जो विविधता है वह सिर्फ शैली की नवीनता नहीं बल्कि अनुभूतियों की तीव्रता उनके भीतर समुद्र की लहरों जैसी आवेग से भरी है।
कथ्य की विविधता में उनकी बालकविताओं का योगदान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। ये छोटी-छोटी कविताएँ अत्यन्त प्रभावशाली हैं। श्री करंदीकर के बहुरंगी संसार से श्रेष्ठतम कविताओं का चयन कठिन कार्य था। इसे सम्पादकों ने अपनी क्षमता और तत्परता से सम्भव किया है। सुयोग्य अनुवादकों ने मूल कविताओं का स्वाद अनुवाद में भी बनाये रखने की कोशिश की है। संकलन में हिन्दी रूपान्तर के साथ मराठी मूल भी दिया गया है ताकि पाठक को रचना आत्मसात करने में अधिकः सुविधा हो।
एक उत्कृष्ट कवि का श्रेष्ठतम चयन हिन्दी पाठको को सौंपते हुए भारतीय ज्ञानपीठ गौरव का अनुभव करता है।