अर्ध-सत्य और अन्य कविताएँ - जीवन जीने की कला में पराक्रम और काव्यभाव के प्रस्फुटन से बी.एल. गौड़ जैसा व्यक्तित्व समाज को मिलता है। ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं। सफल उद्योगपति क्या कवि भी हो सकता है। प्रमाण की आवश्यकता नहीं है, बी. एल. गौड़ की कविताओं के छह संग्रह स्वयं अपनी कहानी कहते हैं। 'अर्ध-सत्य और अन्य कविताएँ' उनकी सातवीं साहित्यिक कृति है। अपनी उम्र के इस पड़ाव पर उनकी रचनाधर्मिता में प्रखरता बनी हुई है। उसमें निखार आया है। वानप्रस्थ की अवस्था में वे उस परिवेश को भूले नहीं हैं जो उनके जीवन का सार्थक अंग रहा है। यही कारण है कि इस संग्रह की कई कविताएँ उनकी उद्यमिता के अनुभवों से जुड़ी हुई हैं। उदाहरण के लिए, उनकी एक कविता है—'देश का क्या होगा?' इस कविता में कवि ने अपने व्यवसाय और देश के भी अन्तिम जन अर्थात मज़दूर को केन्द्रीय विषयवस्तु बनाया है। इसमें गौड़ साहब राष्ट्र निर्माण में मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हैं। वह सामान्य से सामान्य कार्य की गरिमा को स्थापित करते हैं। एक मज़दूर के फावड़ा उठाने की तुलना अर्जुन के गाण्डीव उठाने से और बलराम के हल उठाने से करते हैं। यह उन्हें विलक्षण कवि साबित करता है। एक उद्योगपति होते हुए भी वे मज़दूरों के पक्ष में खड़े हैं। इस संग्रह में इस प्रकार की कुछ और कविताएँ भी हैं जो दुनिया की एक प्रमुख विचारधारा के ऊपर सवालिया निशान खड़े कर देती हैं। इस संग्रह में संस्कृति और परम्पराओं का गुणगान है तो सामाजिक यथार्थ भी। व्यवस्था का शीर्ष है तो उसकी नींव भी। सरकार है तो आम-जन भी हैं। 'अर्ध सत्य' कविता में जीवन का परम सत्य है। हर कविता का एक सन्देश है। बी.एल. गौड़ की इन कविताओं को पढ़ते हुए क़िस्सा सुनने का आनन्द प्राप्त होता है। यह उनकी कविताओं के शिल्प की एक बड़ी विशेषता है।—रामबहादुर राय
"बी. एल. गौड़ -
अलीगढ़ (उ.प्र.) के कौमला गाँव में 12 जून, 1936 को जन्मे बी.एल. गौड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.एससी. करने के उपरान्त रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग में 31 वर्षों तक अनवरत सेवाएँ दीं और वर्ष 1989 में सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। साहित्य, संस्कृति, समाज और दर्शन में हस्तक्षेप रखने वाले बी. एल. गौड़ की अब तक 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 6 कविता संकलन, तीन मीडिया पर, तकनीकी ज्ञान और सिविल इंजीनियरिंग हिन्दी में दो, एक कहानी संग्रह और एक नाटक की कृति प्रकाशित हुई है। हाल ही में उनकी बहुचर्चित कृति 'कैसे बने विश्वकर्मा' हिन्दी में सिविल इंजीनियरिंग की रोज़गारपरक पुस्तकों में सम्मिलित है।
आपको न्यूज़ मेकर्स ब्रॉडकास्टिंग एंड कम्युनिकेशन मुम्बई द्वारा 'लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2018', पहला काशी इंडियन इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल अवार्ड, उद्भव शिखर सम्मान, न्यूज़पेपर एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया द्वारा साहित्यिक सम्पादन एवं लाइफ़ टाइम अचीवमेंट सम्मान, ग्लोबल फेस्टिवल ऑफ़ जर्नलिज़्म द्वारा लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्यश्री सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है।
'नींव से नाली तक' नामक तकनीकी ज्ञान की पुस्तक पर उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमन्त्री और भारत के शिक्षा मन्त्री रहे डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक तथा तत्कालीन राज्यपाल मार्गेट अल्वा द्वारा भी आप सम्मानित हो चुके हैं।
वर्तमान में लेखन के साथ-साथ वर्ष 2005 से निरन्तर प्रकाशित समाचार पत्र 'द गौड़ सन्स टाइम्स' के सम्पादक के रूप में आप कार्य कर रहे हैं।
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