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असलाह

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असलाह - 
सतयुग का समुद्र मन्थन हो या त्रेता में राम-रावण युद्ध अथवा द्वापर का महाभारत या कलयुग का कोई भी युद्ध या विश्व युद्ध! हर युद्ध के बाद हथियार से तौबा करने का नारा ही बुलन्द किया गया पर हथियार है कि कम नहीं हुए बढ़ते ही रहे, ख़तरनाक भी होते गये और दुनिया को बारूद के ढेर पर बिठाने में सहायक रहे। हथियारों के जखीरों में सुलगते ज्वालामुखी का ताप ज्यों-ज्यों बढ़ता जा रहा है आदमी छोटी लकीरों में ढलता जा रहा है।
मानवता की समाप्ति जैसे मौजू सवालों को गम्भीरता से उठाता कथाकार गिरिराज किशोर का यह उपन्यास दरअसल उस आदमी का दर्द है जो हथियारों केबल पर ख़ुद को बड़ा और शक्तिशाली बनाकर दूसरों को छोटा नहीं बनाना चाहता और यही कारण है कि यह कहानी ठीक इसके विपरीत उस आदमी के माध्यम से कही गयी है, जो हथियार प्रेम को 'माँ' से भी कहीं अधिक महान् मानता है, पर हथियारों की होड़ में अन्ततः जीत ममता और मानवता की ही होती है। अमरी की घरवाली की चिन्ता और उसकी अकेली आवाज़ हथियारों के फैलते रेगिस्तान को रोकने की आवाज़ है, जिसमें अन्ततः अमरी भी विलीन हो जाता।

रोचक तथा अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से लिखा यह उपन्यास निस्सन्देह, स्तरीय उपन्यास की कमी को पूरा करेगा।

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गिरिराज किशोर (Giriraj Kishore)

"गिरिराज किशोर - जन्म : सन् 1936 मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में। शिक्षा : स्नातक तक की शिक्षा मुज़फ़्फ़रनगर में और स्नातकोत्तर समाज-विज्ञान विषय लेकर समाज विज्ञान संस्थान, आगरा से। लेखन : शुरूआत नवीं कक्षा से कहानी के रूप में सबसे पहली रचना 1960 में छपी दैनिक हिन्दुस्तान के रविवारीय परिशिष्ट में। तब से आज तक निरन्तर लेखन कार्य हिन्दी उपन्यासकारों एवं कथाकारों में अग्रगण्य कथा लेखन के अतिरिक्त नाटकों की भी रचना जर्मन भाषा में डॉ. लोठार लुत्से तथा अंग्रेज़ी में सर्वश्री जयरतन, डॉ. रोडरमल, प्रभाकर माचवे एवं श्रवण कुमार द्वारा कई कहानियों का अनुवाद। बांग्ला में भी अनुदित। प्रकाशित कृतियाँ : लोग, चिड़ियाघर, यात्राएँ, जुगलबन्दी, दो, इन्द्र सुनें, तीसरी सत्ता, दावेदार, यथा प्रस्तावित परिशिष्ट, असलाह (उपन्यास), नीम के फूल, चार मोती बेआब, पेपरवेट, रिश्ता और अन्य कहानियाँ शहर-दर-शहर, हम प्यार कर लें, जगत्तारनी, गाना बड़े गुलाम अली खाँ का (कहानी संग्रह), प्रजा ही रहने दो, नरमेध, घास और घोड़े, चेहरे-चेहरे : किसके चेहरे, केवल मेरा नाम लो (नाटक), बादशाह गुलाम बेगम (एकांकी संग्रह), संवाद-सेतु (आलोचना) और लहु पुकारेगा (सम्पादन)। "

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