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Vani Prakashan
अस्मिता और अन्यता
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Asmita Aur Anyata
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भूमण्डलीकरण ने जहाँ एक ओर आधुनिकता और परम्परागत संस्कृतियों के बीच द्वन्द्व को और तीखा किया है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न सांस्कृतिक समूहों को एक-दूसरे के सामने खड़ा करके टकराव की स्थिति भी उत्पन्न कर दी है। अपनी-अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा एक व्यापक मुद्दा बन गया है। ‘हम’ और ‘वे’ के बीच विभाजक रेखा हिंसा को जन्म दे रही है। समस्या के निदान हेतु आधुनिकता और संस्कृति के अन्तःसम्बन्धों की पड़ताल ज़रूरी है। एक सामाजिक बुद्धिजीवी के दायित्व का निर्वाह करते हुए लेखक ने जहाँ सांस्कृतिक अस्मिता की ज़रूरत के महत्त्व को स्वीकारा है, वहीं उसकी जड़ता और कट्टरता के परे जाने की वकालत भी की है। इसी की तलाश में अर्जित प्रस्तुत आलेख एक समानधर्मी संवाद की प्रत्याशा से पाठकों को सम्बोधित है।
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Asmita Aur Anyata
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