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अस्मिता और अन्यता

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Asmita Aur Anyata
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भूमण्डलीकरण ने जहाँ एक ओर आधुनिकता और परम्परागत संस्कृतियों के बीच द्वन्द्व को और तीखा किया है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न सांस्कृतिक समूहों को एक-दूसरे के सामने खड़ा करके टकराव की स्थिति भी उत्पन्न कर दी है। अपनी-अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा एक व्यापक मुद्दा बन गया है। ‘हम’ और ‘वे’ के बीच विभाजक रेखा हिंसा को जन्म दे रही है। समस्या के निदान हेतु आधुनिकता और संस्कृति के अन्तःसम्बन्धों की पड़ताल ज़रूरी है। एक सामाजिक बुद्धिजीवी के दायित्व का निर्वाह करते हुए लेखक ने जहाँ सांस्कृतिक अस्मिता की ज़रूरत के महत्त्व को स्वीकारा है, वहीं उसकी जड़ता और कट्टरता के परे जाने की वकालत भी की है। इसी की तलाश में अर्जित प्रस्तुत आलेख एक समानधर्मी संवाद की प्रत्याशा से पाठकों को सम्बोधित है।

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आलोक टण्डन (Alok Tandon )

आलोक टंडन जन्म : 2 फ़रवरी, 1952 शिक्षा : बी.एससी., एम.ए., पीएच.डी. (दर्शनशास्त्र)। भारतीय समाजविज्ञान अनुसन्धान परिषद् के सामान्य फ़ेलो के रूप में ‘धर्म और हिंसा' पर अनुसन्धान-कार्य, भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् के रेजीडेंट फ़ेलो, राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति। सम्प्रति : भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् के प्रोजेक्ट फ़ेलो के रूप में कार्यरत। विभिन्न सम्पादित पुस्तकों एवं पत्रिकाओं में पचास से अधिक शोधलेख (हिन्दी, अंग्रेज़ी) प्रकाशित। 100 से अधिक गोष्ठियों कॉन्फ्रेंसों में भागीदारी व अखिल भारतीय दर्शन परिषद् द्वारा ‘नागर' पुरस्कार से सम्मानित। प्रकाशित कृतियाँ : Man and His Destiny with Special Reference to Marx and Sartre, विकल्प और विमर्श, समय से संवाद।

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