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आउशवित्ज़ एक प्रेम कथा

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Aushwitz : Ek Prem Katha
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" “आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा - स्त्री के प्रेम और स्वाभिमान के तन्तुओं से बुने इस उपन्यास के पात्र और घटनाएँ सच्ची हैं, इतिहास इन घटनाओं का मूक गवाह रह चुका है। हिटलर की नात्सी सेना द्वारा यहूदियों के समूल खात्मे के लिए बनाये यातना शिविरों में से एक है आउशवित्ज़-जो अब संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। युद्ध के निशान ढूँढने पहुँची प्रतीति सेन, अपने जीवन को फिर से देखने की दृष्टि आउशवित्ज़ में ही पाती है। प्रतीति कब रहमाना ख़ातून हो उठती है और कब रहमाना ख़ातून प्रतीति-पहचानना मुश्किल है। कथा शिल्प की दृष्टि से प्रोफ़ेसर गरिमा श्रीवास्तव की प्रस्तुति काफ़ी प्रभावशाली है।"" -प्रोफ़ेसर हेइंज वेर्नर वेस्लर यूनिवर्सिटी ऑफ उप्पसला, स्वीडन गरिमा श्रीवास्तव का यह उपन्यास आउशवित्ज़ एक प्रेम कथा विश्व साहित्य में युद्ध विरोधी लेखन की एक मिसाल है। द्वितीय विश्व युद्ध और बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की स्मृतियों के तनाव के बीच यह बहुस्तरीय उपन्यास लिखा गया है जो कभी-कभी आत्मकथा का भ्रम देने लगता है। यह स्मृतियों के आर्केटाइप जैसा कुछ है जो अपने संरचनात्मक रूप में बहुस्तरीय है। उपन्यासकार इतिहास और वर्तमान के बीच आवाजाही करता है। उपन्यास के भाषिक प्रयोग और भाषा की काव्यात्मकता का मैं क़ायल हूँ। मैं समझता हूँ यह उपन्यास पाठकों को बेहद पसन्द आयेगा। -शेख हफीजुल इस्लाम डिप्टी सेक्रेटरी टू द गवर्नमेंट ऑफ बांग्लादेश और भूतपूर्व कैम्प इंचार्ज, कॉक्स बाज़ार, बांग्लादेश "
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गरिमा श्रीवास्तव (Garima Shrivastava)

गरिमा श्रीवास्तव

गरिमा श्रीवास्तव का जन्म 18 जुलाई, 1970 को नई दिल्ली में हुआ। उन्होंने हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। स्त्रीवादी चिन्तक के रूप में गरिमा अपनी ख़ास पहचान रखती हैं। युद्ध और युद्ध के बाद की स्थितियों को स्त्रीवादी नज़रिये से देखने का उनका प्रयास हिन्दी भाषा-साहित्य की दुनिया में विशिष्ट है।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा’, ‘देह ही देश’, ‘चुप्पियाँ और दरारें’, ‘हिन्दी नवजागरण : इतिहास गल्प और स्त्री प्रश्न’, ‘किशोरीलाल गोस्वामी’, ‘लाला श्रीनिवासदास’, ‘हिन्दी उपन्यासों में बौद्धिक विमर्श’, ‘भाषा और भाषा विज्ञान’, ‘ऐ लड़की में नारी चेतना’, ‘आशु अनुवाद’। कुछ सम्पादित पुस्तकें हैं—‘उपन्यास का समाजशास्त्र’, ‘ज़ख़्म, फूल और नमक’, ‘हृदयहारिणी’, ‘लवंगलता’, ‘वामाशिक्षक’, ‘आधुनिक हिन्दी कहानियाँ’, ‘आधुनिक हिन्दी निबन्ध’ और ‘हिन्दी नवजागरण और स्त्री’ शृंखला में सात पुस्तकें—‘महिला मृदुवाणी’, ‘स्त्री समस्या’ ‘हिन्दी की महिला साहित्यकार’, ‘हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ’, ‘स्त्री-दर्पण’, ‘हिन्दी काव्य की कोकिलायें’, ‘स्त्री कवि संग्रह’। उन्होंने कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं, जिनमें प्रमुख हैं—‘ए वेरी ईज़ी डेथ : सिमोन द बोउवार’, ‘ब्राजीली कहानियाँ’, ‘जारवा भाषा : स्वनिमिक अध्ययन’।

वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्द्र में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं।

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