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Vani Prakashan

Ayodhyasingh Upadhyaya Hariaoudh Rachnawali (10 Volume Set)

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अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' रचनावाली -   
पाँचवें खण्ड में संकलित रसकलस (1931) मूलरूप से लक्षण ग्रन्थ की परम्परा में आता है। इसमें हरिऔध जी का काव्यत्व और आचार्यत्व एक साथ प्रकट हुआ है। रसों की विस्तृत व्याख्या के साथ उदाहरणस्वरूप स्वरचित छन्द दिये गये हैं। प्रयोग के आग्रही हरिऔध नायिका भेद में जाति सेविका और लोकसेविका जैसी कोटियों की उद्भावना करके परम्परित विधान में नये प्रयोग करते दिखाई पड़ते हैं।

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9789350002001
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अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhyasingh Upadhyaya 'Hariaudh')

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' - 
जन्म : 15 अप्रैल, 1865, निजामाबाद, आजमगढ़ (उ.प्र.)। 1879 में निजामाबाद के तहसीली स्कूल से मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण 1884 में वहीं अध्यापक हुए 1882 में अनन्त कुमारी से विवाह। 1887 में नार्मल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण। 1889 में क़ानूनगो की परीक्षा उत्तीर्ण करके कानूनगो, गिरदावर क़ानूनगोई और सदर क़ानूनगो पदों पर कार्य। 1923 में सरकारी नौकरी से अवकाश ग्रहण। मार्च 1924 से 30 जून, 1941 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अवैतनिक अध्यापक।
द्विवेदी युग के प्रमुख स्तम्भ। ब्रज भाषा और खड़ी बोली में रचनाएँ। गद्य और पद्य की सभी प्रमुख विधाओं में लेखन। सिंह का हरि और अयोध्या का औध करके 'हरिऔध' उपनाम रखा। हिन्दी के अलावा, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी, फारसी, पंजाबी, मराठी और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान। प्रियप्रवास, वैदेही वनवास, रसकलस, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, ठेट हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल आदि प्रमुख कृतियाँ। खड़ी बोली के पहले महाकाव्य प्रियप्रवास के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक कवि सम्राट की उपाधि। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी चुने गये।
16 मार्च, 1947 को निजामाबाद, आजमगढ़ में मृत्यु।

 

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