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Bang Mahila : naree mukti ka sangharsh

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"भवदेव पाण्डेय ने हिन्दी की आदि कथाकार 'बंग 'महिला' की अनेक ऐसी रचनाओं और तत्कालीन साहित्य-समाज के विवादों की ओर ध्यान दिलाया है, जिन्हें देखते हुए अनायास ही रुकैया सखावत हुसैन का ध्यान हो आता है। संयोग से 'बंग महिला' का भी समय उन्नीसवीं शताब्दी का अन्त वीसवीं शताब्दी का प्रारम्भ ही है। उन्हें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का आशीर्वाद प्राप्त था और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी 'सरस्वती' में उनकी रचनाएँ 'असहमतियों' के बावजूद प्रकाशित करते थे, विधवा महिला को अनेक अन्य लांछनों के साथ यह भी बार-बार सुनना पड़ा कि 'कोई पुरुष' ही 'बंग महिला' नाम से लिख रहा है। क्या इसके पीछे भी कोई पुरुष कुण्ठा ही है कि आज भी उनकी 'दुलाईवाली' कहानी के अलावा अन्य रचनाओं की चर्चा कम होती है। 1916-17 की रामेश्वरी नेहरू ('स्त्री दर्पण' पत्रिका) से भी पहले इस साहसी महिला ने जिन नारी प्रश्नों को उठाया, उनसे आज भी भारतीय नारी आक्रान्त है। बहरहाल, मैंने भवदेव पाण्डेय से आग्रह किया है कि शोध के सारे उपलब्ध स्रोतों, श्रुतियों और तत्कालीन पत्रिकाओं की सहायता से वे 'बंग महिला' की एक प्रामाणिक जीवनी भी लिखें। लगभग 90-95 वर्ष गुज़र जाने के बाद शायद अब वे लिहाज़, शिष्टाचार और बचाव बहुत प्रासंगिक नहीं रह गये हैं, जो उस समय बहुत से सत्यों और तथ्यों को दबा देने के कारण हो सकते थे।"
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Bang Mahila : naree mukti ka sangharsh
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भवदेव पाण्डेय (Bhavdeo Pandey )

"भवदेव पांडेय - जन्म: मई, 1924 (भसमा, गोरखपुर)। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी.। प्रकाशन: अँधेर नगरी-समीक्षा की नयी दृष्टि (1995), अन्धा युग-अधुनातन समीक्षा-दृष्टि (1995), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-नये परिदृश्य (1997), बंग महिला-नारी मुक्ति का संघर्ष (1999), पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' (2001), आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना के नये मानदण्ड (2003), हिन्दी कहानी का पहला दशक (2006)। पुरस्कार/सम्मान: विद्या वाचस्पति (हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा-1996), अज्ञेय पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ-1997)। "

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